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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
पूज्य श्री कस्तूरचन्दजी महाराज की सेवा में
कवि अभयकुमार “यौधेय" (मेरठ) ओ मालव के संत रत्न, विद्या वारिधि तुमको प्रणाम । ओ परम तपस्वी मह संत, शत शत प्रणाम ! शत शत प्रणाम !!
है जैन श्रमण ! हे महास्थविर ! जिन' दर्शन के अद्भुत पंडित ! हे श्रमण संघ के चूड़ामणि !
हे गौरवमय-महिमा मंडित !! जाग उठी धरा अब करवट ले, कस्तूरचन्द्र हे महाप्राण ! धारण कर चरण-धूलि तेरी, करती प्रणाम ! शत शत प्रणाम !!
ओ मालव के संत रत्न, विद्या वारिधि तुमको प्रणाम !!
पूज्य श्री हीरालालजी महाराज की सेवा में
D कवि अभयकुमार "यौधेय"
जग मग करता एक सितारा, अम्डर छोड़ धरा पर आया। अंधकार मिट गया जगत का,
वह जब श्रमण संघ में आया। 'हीरालाल' नाम से पाई ख्याति, जिन शासन का रत्न कहाया । दूर दूर तक धरा नाप कर, इसने घर घर धर्म सुनागा ॥
महावीर का वीर सिपाही, धर्म ध्वजा लेकर चलता है। जिधर उठाता चरण संतवर, उधः पुण्य खिलता फलता है ।
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