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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
(३१) भूले - भटके पथिकों को, सद्राह आपसे मिलती है। एक बार भी दर्शन करले, मुझित कलियां खिलती हैं।
(३२).
अन्धकार को दूर हटाने, ज्ञान आपने पाया है। धन्य आपके मात-पिता हैं, जीवन धन्य बनाया है।
(३३) राजस्थान-गुजरात और भी, भ्रमण किया है उत्तर देश। बंगाल, आन्ध्र, पंजाब, केरला अति घूमे हैं मध्य प्रदेश ।
(३४) तमिलनाडु अरु कर्नाटक में, विहार किया है देश बिहार । जम्मू तक पहुंचाई है, अमृतमय वाणी प्रियकार ॥
जैनागम विशारद हिमकर, प्रवचन शैली है प्यारी । जो धारे जीवन में अपने, बन जाता वह गुणधारी ।।
(३६) मन के निर्मल, तन के निर्मल, निर्मल ऋजुता के सागर । नहीं ज्ञान से गर्वित होते, अहो! मुनि गुण रत्नाकर ॥
(३७) व्यक्तित्व और कृतित्व समन्वय, हुआ आपकी वाणी में । पवित्र-प्रेम पाने की आशा, करते हैं हर प्राणी में ।
(३८) रहे सदा जयवंत प्रवर्तक, यही कामना होती है। सफल भावना, सफल कामना, निश्चल मन की ज्योति है ।।
__ (३९) उज्ज्वल गौरव समाज का है, जो करते हैं अभिनन्दन । मेरा भी ले लेवें मुनिवर ! चरणों में शत-शत वन्दन ।।
(४०) प्रतिदिन-प्रतिपल अभिनन्दन, हर मुनि आपका करते हैं। 'विजय मुनि' शुभ मंगलदायी, पवित्र-प्रेरणा वरते हैं।
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