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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
(१०)
सात वर्ष की आयु में ही, प्रिय माताजी विदा हुई। अकथनीय वात्सल्य और, प्रीति भी जिनसे जुदा हुई ।
(११)
बड़ी बहन थी 'कंचन', अरु छोटा भाई ‘पन्नालाल'। काल ले गया उन दोनों को, दया न आई महा कराल ।
(१२) देख विदाई इन तीनों की, मन में छाया तब वैराग। आपने ही मन से वे बोले-जाग ! जाग !! मन ! ममता-त्याग।
दिया किसी ने लालच जब, अपने अतुलित वैभव का। ओज पूर्ण उपदेश दिया जो, पाया आपने अनुभव का ॥
अन्धकार में धक्का देती, महा विकट है यह माया। अब तक इसको नहीं समझा है, अरु ज्ञान भी नहीं पाया ।
हीरा ने विराग पथ पर, कदम बढ़ाकर की प्रवृत्ति । माया के बन्धन से ले ली, हर्षित हो स्वेच्छा निवृत्ति ॥ .
(१६) ऐसे ही स्वर्णिम अवसर पर, 'नन्द गुरु' का चातुर्मास । जिनके अमृत उपदेशों से, छाया हर जन में उल्लास ।
(१७) दीपक की संगति पाकर के, अपर दीप पाता है प्रकाश । एक आत्मा के जगते ही, अपर आत्मा पाय विकास ॥
(१८) दीक्षा की होते ही भावना, पूज्य पिता को जगा दिया। धार्मिकता की स्वच्छ लगन में, उन्हें भी जिसने लगा दिया ।
जिनकी प्रबल प्रेरणा से ही, सूत्रों का अभ्यास किया। प्रतिक्रमण कर लिया श्रमण का, अनेक स्थोक का ज्ञान लिया ।।
(२०) त्रय महामुनि ने इसी वर्ष में, प्रिय संयम को स्वीकारा। उन्नीससौगुन्यासी का है, विक्रम सम्वत् अति प्यारा ॥
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