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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
कस्तूर गुण- ज्ञान
मुनि विजय 'विशारद'
कस्तूर गुरुवर प्यारे हैं, जिन शासन की शान । करते हैं अभिनन्दन, अरु हम गाते गुण गान ॥ टेर ॥
'फूली' माता के प्यारे दुलारे ।
'रतिचंद' जी के कुल उजियारे ॥ सौम्य सुहाने गुणिवर हो समता के निधान ॥ १ ॥
परम सौभागी ।
ज्ञानी - महामुनि सम्पर्क पा कई आतम जागी ॥
धन्य पिता-माता है, अरु धन्य ज्ञान गुणखान ॥२॥
मालव के महा रत्न कहाते । कंकर को शंकर भी बनाते ॥
'सागर वर गंभीरा' करते हैं जग उत्थान ||३||
जैनागम के ज्ञाता गुरुवर । दीनों के रक्षक करुणा के सागर ॥
अहो ! मालव के भूषण, अहो मालव निधि महान ||४||
मधुरता का झरणा वचनों में झरता ।
हर-नर-जन को पावन करता ॥
हर्षित होकर वचनों का करते हैं जो पान ||५||
शुभ पद को तुम भूषित करते ।
विषैले मानस में भी अमृत भरते ॥
'उपाध्याय' पद पाये अहो ! श्रमण संघ के प्राण ॥६॥
मोती ।
अद्भुत संयमी सच्चे
जीवन में भर दो शुभ
ज्योती ॥
उज्ज्वल मार्ग बनेगा, अपनाये जो सज्ञान ॥
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