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शुभकामना एवं श्रद्धार्चन १८७ अमिनन्दन हम करते हैं
। बालकवि सुभाष मुनि “सुमन"
मनोहर छन्द सरल स्वभावी मुनि, ज्ञानियों में आप गुणी। माया और ममता को, मन से विसारी है। तप त्याग शूर महा, परम तेजस्वी मुख । सद्गुण प्रकाशक, संयम सुधारी है। साधना का तेज सुन्दर अलौकिक रमणीक । वाणी मीठी मधु सम, कपट बिसारी है ।। कहत “सुभाष मुनि" प्रवर्तक पद धारी। उच्चता है जीवन में, आचार विचारी है ॥१॥ अहिंसा के उपदेशक, आगम के ज्ञाता महा। परम दयालु गुरु, वैराग्य के धारी हैं। लक्ष्मीचन्द पिता गुरु, यथानाम तथागुण । हगामजी धन्य हई, धन्य महतार सुदूर प्रदेश घूम, वीर वाणी प्रचारक ! गम्भीरता मेरु की सी, धीरता अपारी है। कहत "सुभाष मुनि" प्रवर्तक पद धारी। विराटता जीवन में, महिमा विस्तारी है ॥२॥ आनबान शान देखो, दीपा रहे मुनिवर । श्रमण संघ निष्ठा आप, त्यागमूर्ति भारी है ।। दीप्ति दमकती भारी, हीरा जैसी चमकति । ऐसे मेरे प्रवर्तक, हीरालाल भारी हैं। हीरा के सदृश्य जीवन, कलिमल काम नहीं। चरित्र पवित्र पूत, परम आचारी हैं। कहत "सुभाष मुनि" जैन तत्व विशारद । पाद पद्म चरण में वन्दना हजारी है ॥३॥
राधेश्याम जय जय जीवन तेरा है, जय जय करे नर नारी है। जय जय करते सुर गण भी, वह संजम भी सुखकारी है। चहुँ दिशि में फैले कीरत, यह कामना हम सब करते हैं। शतायु हों हे पूज्य प्रवर्तक ! यह भावना निशदिन करते हैं ।।
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