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जन्म
मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
दीक्षा
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दोहा
दिवाकर नवरत्न में तत्त्व' नव में जेठ वदी, जन्म लिया जिस दिन गुरु, हरषे बटी बधाई सर्वत्र ही होता मंगलाचार ॥२॥
नर नार ।
'चतुर्विद दिशा जान । तेरस १ 3 रवि सुजान ॥ १॥
शीतल शीतल' चन्द है, निधि मिले सुख जान । षट् काया प्रतिपाल गुरु, नयनर बसे निर्वाण || ३ || कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी, 13 गुरुदिन शुभ पहचान । दीक्षा लेकर धन्य हुवे, महा गुणी गुणवान ||४||
૧૩
राधेश्याम
अभिनन्दन शत ! शत !! हे गुरुवर ! आज तुम्हारा करते हैं । चिरायु हों हे पूज्य प्रवर ! यह कामना जन मन करते हैं ॥१॥ दिग् दिगन्त में महक उठी, संयम की ज्योति यह प्यारी । प्रभावित होते उसे देखकर, महिमा गाते नर नारी ॥२॥
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