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१७८ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ मालवरत्न ज्योतिषाचार्य पूज्य गुरुदेव श्री कस्तूरचन्दजी म० के पुनीत चरणों में
श्रद्धासमन
श्री रंग मुनिजी महाराज
[तर्ज : म्हाने जयपुरिया को] गुरुवर करुणा रा भण्डार, जिन शासन रा शृंगार । म्हारे हिवड़ा में पूरा पूरा बसिया म्हारा गुरुवरजी २
जय जय थांरी नित्य बोल ॥टेर।। जन्म जावरा में पाया, रतिचन्द पिता कहलाया। माता फूली बाई जाया, आनन्द पाया म्हारा गुरुवरजी।
जय जय थांरी नित्य बोलूं ।।१।। तेरह वर्ष में जब आया, पूज्य खूबचन्द गुरु पाया। रामपुरा में संयम पाया, मुनिराया म्हारा गुरुवरजी।
जय जय थांरी नित्य बोलू ।।२।। केशर, किस्तूर की या जोड़, यांकी कौण करेला होड़ । मोह, ममता, बन्धन तोड़, संयम धारियो म्हारा गुरुवरजी।
जय जय थांरी नित्य बोलूं ॥३॥ भणिया जैनागम प्रमाण, कीनो ज्योतिष को बह ज्ञान । मालव रत्न निधान, पद पाया म्हारा गुरुवरजी।
जय जय थांरी नित्य बोलूं ।।४।। ज्ञानी ध्यानी समतासागर, क्षमामूर्ति गुणरा आगर । कलिमल नाशे दर्शन पाकर, लाभ कमाया म्हारा गुरुवर जी।
जय जय थांरी नित्य बोलूं ॥५॥ अमृत जैसी गुरु की वाणी, दर्शन कर सुधरे जिन्दगानी। चमके दमके है पुण्यवानी, भारी लाया म्हारा गुरुवर जी।
जय जय थांरी नित्य बोलूं ॥६।। नभ में चमके पूनम चन्द, जग में चमके किस्तूरचन्द । यां की महिमा जग में छाई, सौरभ पाई म्हारा गुरुवरजी।
जय जय थांरी नित्य बोलूं ॥७॥ शत शत बार करूं मैं वन्दन, निर्मल भावां सूं अभिनन्दन । शीतल गुरुवर जैसे चन्दन, अमृत पाया म्हारा गुरुवर जी ।
___जय जय थांरी नित्य बोलूं ॥८॥ युग-युग जीवो गुरुवर ज्ञानी, करली सफल आप जिन्दगानी। म्हांने भवसागर सूं तारो, पार उतारी म्हारा गुरुवरजी।
_ जय जय थांरी नित्य बोलू ॥६॥ सत्य अहिंसा रा पुजारी, निर्मल पंच महाव्रत धारी। ज्योति ज्ञान री जगाई, राह दिखाई म्हारा गुरुवरजी।
जय जय थांरी नित्य बोलूं ॥१०॥ गुरुवर चरण शरण में आयो, श्रद्धा सुमन साथ में लायो। मनड़ो “रंगमुनि" हरषायो, सुख पायो म्हारा गुरुवरजी।
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