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(१)
शस्य श्यामला मालव धराकी अमर अनूठी कहानी है । आर्य संस्कृति सभ्यता की, इसने की अगवानी है ॥ (२) इसकी गौरव गाथा गा कर सुर नर मुनिवर हर्षाते हैं । इतिहास के पन्ने खोल देखो जहाँ सभी आश्रय पाते हैं । (३)
प्रकृति की सुषमा चारों ओर,
फल फूलों से हरी भरी । धर्म दर्शन की
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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
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गुरु- कस्तूर गुण- पच्चीसी
श्री रमेशमुनि सिद्धान्ताचार्य
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रंगस्थली,
है काव्य राशि पग-पग बिखरी ॥
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(४)
कल्याण केन्द्र गुरु कस्तूरचन्द, गुण रत्नों का न किनारा है । सदा जयवंत भगवंत रहो, बस यही हमारा नारा है ॥ (५) उन्नत उदर गण धर जैसा, आकर्षण करता जन मानस है । अनुभव मेरा यही बताता, जिसमें ज्ञानामृत सा रस है || (६) विशाल भाल भव्य जँचता, चमक-दमक मन मोहक है । भुजा, भाल प्रबल पुण्याई के द्योतक है ॥
वक्षस्थल
(७)
पार्थिव देह की बाह्य विभूति जो वैर विरोध भुलाती है । भूली भटकी आत्माओं को सत्वर सन्मार्ग में लाती है ॥ (5)
कैसी अनोखी तपोमूर्ति अहा, यशस्वी - तेजस्वी ओजस्वी महा । दर्शन से आनन्द मकरन्द उभरे, तात्त्विक मनस्वी ऋषि महा ॥ (ह) सम्यग्दर्शन के शुद्धाराधक, सम्यग् ज्ञान के शुद्ध साधक हो । सम्यक् चारित्र के पवित्र पालक मोक्ष मार्ग के विधायक हो ॥ (१०)
दीन दुखी दलितों के सेतु हो, सुख धाम विश्राम हेतु हो । दयासिन्धु भवी कुमुद इन्दु, कर्म - अरि के लिए केतु हो । (११)
है करुणामृत से हृदय पूरित, है दानामृत से हस्त शोभित । वचनामृत से रसना रमणीयकमनीय आकृति करती लोभित ॥ (१२) जैसी कथनी वैसी करणी, और करणीवत् कथनी अहो ! रत्नत्रय की भव्य भरणी अरु भव्यों के लिए तुम तरणी अहो ॥
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