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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ उपाध्याय ज्योतिर्विद श्री कस्तूरचंदजी महाराज के प्रति भारत की सम्पदा
0 गणेशमुनि शास्त्री
वन्दनीय अभिनन्दनीय है, सन्त सम्पदाएं भारत की। मालवरत्न पूज्य मुनिवर लें, भेंट भावयुत कृत स्वागत की। सूक्ष्म सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम, दृष्टि बनी रहती सन्तों की। सन्तों की शुभ सेवाओं से, शोभा होती सत्पन्थों की ।।
सन्त पन्थ है पन्थ सन्त है । सन्तसुना करते सुखपूर्वक, पीड़ा असमय समयागत की... धन्य पिता श्री रतीचन्द जी, धन्य धन्य मां फूली बाई । जन्मभूमि भी धन्य जावरा, रामपुरा में दीक्षा पाई ।।
धन्य धन्य गुरु खूबचन्दजी। जिनके द्वारा शिक्षा पाई, पंच महाव्रत समता - सत की यह मेरा यह तेरा ऐसा, नहीं आपने जाना - माना। स्वीकृत किया हुआ सेवाव्रत, बस निष्ठा से उसे निभाना ।।
आर्य ज्योतिषाचार्य प्रवर नित भाव सहित अनुमोदन करते, औरों के शुभ कृत- कारित की..." 'मुनि गणेश' शास्त्री क्या बोले, बोल रहा यश सदा आपका। न्यक्कृत बनता रहा आप से, बहुत बड़ा परिवार पाप का ।
उपकृत सत्कृत संघ आप से प्रतिकृति प्राप्त न होती हमको, ऐसे स्पष्ट लिखित मुनि खत की
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