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शुभकामना एवं आशीर्वचन
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प्रवर्तक श्री हीरालालजी
महाराज की कातिल
श्री गणेशमुनि शास्त्री
संस्कृत प्राकृत गुजराती फिर, हिन्दी का अभ्यास किया। भाषाओं के माध्यम से ही, जग को नव्य प्रकाश दिया ।।
शारद सलिल समान समुज्ज्वल, तत्त्व विशारद हीरालाल । पूज्य प्रवर्तक मुनिजी की ये, जीवन रेखाएँ सुविशाल ।।
(२) सम्बत् उन्नीसौ चौसठ के, पौष मास का उज्ज्वल पक्ष । तिथि एकम शुभवार शनैश्चर, मन्दसौर का स्थल प्रत्यक्ष ।।
भारत के ग्यारह प्रान्तों में, विचरे जन हित करने को। आप उतरते गहराई में, कहते डडे उतरने को ।।
दूगड़ लक्ष्मीचन्द्र सेठ के, घर में पत्नी कुँवर हगाम । जन्म आपका जान जगत ने, प्रकट किया था हर्ष प्रकाम ।।
हंसता हुआ चेहरा सुन्दर, गौर वर्ण अति भव्य ललाट । ये सारे प्रकटित करते हैं, मुनि जी का व्यक्तित्व विराट ।।
पन्द्रह वर्षों के होते ही, निकले संयम लेने को। मुनिवर लक्ष्मीचन्द्र पधारे, पावन संयम देने को।
स्पष्टवादिता अनास्वादिता, आल्हादितता लिए चलते । गुणी पुरुष का आश्रय पाकर, गुण-गण सुख पूर्वक पलते ।।
(8)
'जिओ और जीने दो' का ये, देते हैं संदेश 'गणेश'। जिओ आप चिरकाल शुभेच्छा, उपहति मेरी एष विशेष ।।
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