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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
श्रो शासन के सम्राट् !
D प्रियदर्शी श्री सुरेश मुनिजी महाराज (तर्ज- दिल लूटने वाले....)
ओ शासन के सम्राट् गुरुवर, ध्यान तुम्हारा लगाऊँगा । हृदय मन्दिर में नाम सदा मैं, मन वच-तन से ध्याऊँगा ॥ टेर॥
इस शस्य - श्यामला मालव भूमि में जन्म आपने पाया है । माता 'फूला' ने फूल दिया, पिता 'रतिचन्द' मन भाया है ॥
में हर्ष विभोर हो सदा आपके, गुण गौरव को गाऊँगा ॥ १ ॥ कुल चौदह वर्ष की वय में आपने, संयम को स्वीकार किया । कार्तिक सुद तेरस 'रामपुरा', पूज्य 'खूबचन्द' धार लिया ||
ज्योतिषाचार्य कस्तूर गुरु को कभी भूल नहीं पाऊँगा ||२|| जो भी आता आप शरण में, उससे मधुर व्यवहार करे । मिलनसार रहने की गुरुवर, प्यारी मिष्ट गिरा उचरे ॥
'मालव रत्न' 'करुणा सागर ' की सेवा सदा बजाऊँगा ॥३॥
मानस स्थल गंभीर आपका, वाणी मिश्री सम मानो । देव पुरुष ये अवतरे हैं, प्रकाश ज्योतिर्मय जानो ॥ आशीष आप गुरु देना मुझको, आतम ज्योति जगाऊँगा || ४ ||
जैन जगत के उजियारे, जयवंत गुरु उद्धार करो। कस्तूरी सम यश फैल रहा गुरु, अखण्ड आनन्द माल करो || 'मुनि सुरेश' आपके चरणों में, मैं हरदम शीश नमाऊँगा ||५||
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