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मूनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
परम प्रणम्य, धैर्य, गाम्भीर्य, करुणा, अहिंसादि विविध सद्गुणालंकृत, ज्योतिविद्
श्रमणप्रवर, महास्थविर, अमृत-सन्त, मालवरत्न सद्गुरुदेव
पूज्यश्री कस्तूरचन्द जी महाराज
पुनीत पाद-पद्मों में सभक्ति समर्पित
प्रशस्ति-पत्र
पूज्यपाद गुरुदेव !
महान जैन तीर्थ रतलाम में आचार्य श्री मन्नालाल जी महाराज के ऐतिहासिक शताब्दीसमारोह के पावन अवसर पर आपश्री के आज्ञानुवर्ती धर्म-निष्ठ भक्तों ने अमृत महोत्सव का मंगल आयोजन कर अपनी अगाध गुरु-भक्ति को श्रद्धात्मक अभिव्यक्ति प्रदान की है। यह शिष्य परम्परा का सहज सनातन-स्वरूप सर्वथा अनुकरणीय एवं अभिवादनीय ही है। दिव्य-आलोक-स्तम्भ !
आपश्री के आदर्श-जीवन की ज्योतिर्मयी रश्मियों की उष्मा से अनुप्राणित होकर किसी भी भक्त श्रावक का आत्म-कमल विकसित होकर धर्म-सौरभ से आह्लादित हो उठता है। आप श्री की सत्प्रेरणा से ही हम जैन तरुणों ने श्रमण संस्कृति के चतुर्दिक विकास का लक्ष्य लेकर "मालवरत्न श्री कस्तुरचन्दजी महाराज जैन नवयुवक मण्डल रतलाम' की स्थापना की है एवं अपने इस तरुण संगठन के माध्यम से समाज की नई पीढ़ी को श्रीसंघ समाज एवं संस्कृति की सेवा के संकल्प को साकार करने की शुभ दिशा में उन्मुख कर रहे हैं जो वस्तुतः श्लाघ्य है । तरुणों के आशा केन्द्र !
आज इस अमृत-पर्व पर हम आपश्री के पावन-चरणों में विनयावनत होते हुए सम्पूर्ण श्रद्धा, निष्ठा, आस्था एवं चेतना-सहित आत्मार्पित होते हुए आपश्री को विश्वस्त करते हैं कि महान् श्रमण संस्कृति के हितार्थ हमारी नई पीढ़ी सर्वस्व समर्पण करने में कभी भी पीछे नहीं रहेगी तथा आपश्री के संयम, साधनाशील चरण-चिन्हों पर चलने में कदापि संकोच नहीं करेगी। अमृत-सन्तप्रवर !
आप चिरायु हों और शतियों तक हम तरुणों को धार्मिक तत्त्वबोध की संप्राप्ति आपश्री से निरन्तर होती रहे इसी मनोभावना के साथ सविधि बन्दना कर यह श्रद्धा प्रतीक प्रशस्ति-पत्र आपश्री को स-भक्ति स-सम्मान समर्पित करते हैं।
सन्तं शरणं गच्छामि वीरं शरणं गच्छामि धम्मं शरणं गच्छामि
गुरुदेव के श्रद्धाभिभूत तरुण भक्त शान्तिलाल काठेड "सरकार" अमृतलाल गांधी
महेशचन्द्र शाह अध्यक्ष कार्य समिति अध्यक्ष
मन्त्री मालवरत्न श्री कस्तूरचन्द जी महाराज
जैन नवयुवक-मण्डल दिनांक-३ मई, १९७१, सोमवार
रतलाम बैशाख सुदी ६, सम्वत् २०२८
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