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सन्देश १४६ पधारे। युवक कस्तूरचन्द भी अपने भावों की निर्मलता से अनुप्राणित होकर या
शुभ अपने अग्रज केसरीचन्दजी के साथ वाणी श्रवणार्थ पहुंचे। गुरुदेव की वाणी । में जादू का सा असर था। जन-जन के मन-मन में अभिनव जागृति का कामना संचार कर संयम निर्मल जलधारा से हृदय मन्दिर में आपूर्ति करदी।।
संयम क्या है ? इन्द्रियों की चंचलता पर अंकुश लगाना! जो मनीषी मन और इन्द्रियों पर नियन्त्रण करता है वही श्रेष्ठ पथ का अनुसरण करके आत्मसाधना कर सकता है । उसका ही आत्मोद्धार निश्चित है।
___ गुरुदेव की वाणी ने जादू का सा असर किया। दोनों भाइयों को संसार की असारता का प्रत्यक्षतः अनुभव होने लगा। उन्होंने सुपथ अपनाने का दृढ़ निश्चय कर लिया। गुरुदेव के चरण कमल में जाकर फूलों से कोमल संयम जीवन को समझकर ववादपि कठोर मार्ग पर साधक रूप में चल पड़े। भगवान महावीर के शब्दों में
जहा कुम्मे स अंगाई सए देहे समाहरे।
एवं अंगाई मेहावी अज्झेप्पेण समाहरे ॥ विकास की ओर बढ़ने की भावना रखने वाले मानव के लिए संयमी वृत्ति का विकास करना अनिवार्य है। ऐन्द्रिक, शारीरिक और मानसिक शक्तियों का सकार्यों और परोपकार में व्यय करना ही संयम है। यही सुख का राजमार्ग है। श्रद्धेय श्री जी का पूरा जीवन एक स्वच्छ दर्पण के समान पवित्र एवं समुज्ज्वल है।
जिस दिन विक्रम सम्वत् १९६२ में रामपुरा मध्यभारत के एक जाज्वल्यमान ग्राम में आपका दीक्षा समारोह हुआ उसी दिन से आपने अपना कार्यक्रम अन्धकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर मोड़ दिया। आपने अपना उद्देश्य संयमाराधना ज्ञानाराधना ही बना दिया।
आपका हृदय करुणा से आप्लावित रहता है। जहाँ कहीं भी दोन दुःखी, अपाहिज दृष्टिगोचर होते हैं तो वहाँ आपका हदय करुणा से भर जाता है । ऐसे हजारों प्राणी हैं जिन पर आपका वरद हस्त आच्छादित है।
सर्वप्रथम आपके दर्शनों का सौभाग्य "सोजत सम्मेलन" में हआ था। उस समय मैंने पाया कि आपके नेत्रों में करुणा का अथाह सागर झौंके मार रहा है। उपनेत्रों से टपकता हआ प्रकाश अमृत बनकर सभी को अमर कर रहा है। फिर तो अनेक बार आपके दर्शनों का सौभाग्य मिलता ही रहा।
इस अभिनन्दन समारोह में अपनी शुभाकांक्षा इस भावना के साथ पूर्ण करता हूँ कि सवासौवीं जयन्ती समारोह के उपलक्ष्य में आयोजित सभा में मुझे भी श्रद्धा कुसुम चढ़ाने का समय मिले, बस इसी भावना के साथ
समता शुचिता सत्य समन्वित । पावन जीवन . दर्शन । आगमविचारक करुणहृदय निस्पृह साधक । लो शत शत निर्मल का अभिनन्दन ।।
-भगवती मुनि 'निर्मल' For Private & Personal Use Only
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