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शुभकामना एवं
आशीर्वचन
] मरुधरकेशरी प्रवर्तक श्री मिश्रीमल जी महाराज
(१) संयमवय मुनि ज्ञान में, | बड़े वृद्ध मुनिराज । दिव्य दिवाकर संघ में, सन्तन के सिरताज ।।
धीमी बोली धवल यश, गिरवापन गम्भीर । निपट निभाऊ संघ में, निर्मल गंगा नीर ।।
रखे शांतता हृदय में, और वही वचन प्रवाह । काया पण दुरी नहीं, योग त्रय सुख दाय ।।
(४)
हेर लेवो सारी जगह, जाकर आप जरूर । इसड़ी जग लाधे नहीं, जिसड़ी वहाँ किस्तूर ।।
तन चक्षु ज्योति नरम, ज्योतिष की जो राय । जो जावे जाके निकट, झटपट पूरे चाह ।।
हद विचरे हर देश में, मुनिवर हीरालाल । प्रवर्तक पद है प्रगट, चौखी मुनि पद चाल ।।
इन दोनों का संघ में, अभिनन्दन अभिराम । संघ करेला सांतरो, राजी मन रतलाम ।।
द्वय मुनि दीर्घायु हो, दिन दिन धर्म उद्योत । करजो और फलजो सदा, जगा जैन की ज्योत ।।
दो सहस्र तैंतीस वर्ष, भादव तम पख बीज । मिश्री कहे दोनों मुनि, चिरंजिव रहे चीज ।।
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