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संदेश
मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
मुनि मणिमाला के दो रत्न
[D] ताराचन्द भण्डारी (जालना)
जगतीतल पर जब-जब भी अन्धकार का आधिक्य हुआ, अन्ध रूढ़ियों व अनीतियों का बोल-बाला हुआ, भ्रष्ट व क्रूर अत्याचारों के बर्बर प्रताड़न से प्रताड़ित जनमानस झुलस गया तब-तब " तमसो मा ज्योतिर्गमय” की अनुभूति का अवलोकन इस देश ने कराया है ।
जनमानस के दुःख हरण करने तथा उन्हें प्रेम के बन्धन में बांधकर सुख-शांतिमय जीवन व्यतीत करने का मार्ग दिखाने के लिए, मानवतन धारण कर विशिष्ट महापुरुषों का आविर्भाव घरातल के इस भूखण्ड पर होता रहा है । जिन्होंने अपने आलोक से जन-मन को आलोकित करते हुए भारतीय तत्त्व चेतना के स्वर मुखरित किए तथा पर की पीड़ा को करुणा की नजर से देखते हुए उन्हें उससे मुक्ति दिलाने वाला कल्याण मार्ग दिखाया । इस बात का इतिहास साक्षी है कि इस महान् देश की सभ्य परम्परा की महानता इसी में दृष्टिगोचर होती है कि उसमें स्वार्थ, विषयवासना तथा लोलुपता के तत्त्वों को कहीं भी महत्व नहीं दिया गया बल्कि सद्गुणों की ही उपासना उसका लक्ष्य रहा और इसीलिए यहाँ जिन-जिन महापुरुषों
आविर्भाव हुआ वे सत्-सद्गुणों के साक्षात अवतार ही रहे हैं ।
भारतीय संस्कृति में श्रमण संस्कृति का अपना निराला स्थान रहा है । जिन महापुरुषों का इस श्रमणधारा में आविर्भाव हुआ उन्होंने त्यागविराग, करुणा, दान और सेवावृत्ति को सर्वाधिक महत्व दिया । आज भी इस धारा के अनुयायी उसी का अवलम्बन करते हुए इस परम्परा को अनुप्राणित रखने में सतत प्रयत्नशील है ।
इस प्रवाह को अखण्ड प्रवाहित रखने का महत्वपूर्ण कार्य जिन महापुरुषों ने किया और वर्तमान में कर रहे हैं, उन मनीषी महापुरुषों की मणिमाला के ही श्रद्धेय पंडितरत्न मुनि श्री कस्तूरचन्दजी महाराज तथा शास्त्रविशारद पंडितरत्न मुनि श्री हीरालालजी महाराज रत्नगर्भा मालवभूमि के दो मणिरत्न हैं । स्थानकवासी समाज की यह दो महान् विभूतियाँ हैं जो मानव मात्र के लिए वरदान स्वरूप हैं । मालवरत्न मुनिद्वय का दीर्घ संयमी जीवन, प्रशंसनीय शासन सेवा, अमृतत्व बोधागमिक 'विधा' की साधना, एवम् जिन साहित्य के अध्ययन में समरसता अपने आप में इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि जो सदा सर्वदा अभिनन्दनीय रहे हैं और रहेंगे ।
अन्त में प्रभु वीर से प्रार्थना करता हूँ कि त्याग-विराग की यह साक्षात् वीतरागी मूर्तियाँ दीर्घ-संयमी जीवन व्यतीत करते हुए संघ-समाज व राष्ट्र में शांति एवं "वसुधैव कुटुम्बकम्" की भावना जाग्रत कर मानव जीवन को प्रेम प्रकाश की ओर पल्लवित व विकसित करने की प्रेरणा देते रहें युग-युगान्तर तक । यही इस " मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ " के समा योजन के पुनीत पावन मंगलमय वेला में मुनिद्वय के श्री चरणों में मैं अपनी भक्ति भाव भरी पुष्पांजली वन्दना के स्वरों में अर्पित करते हुए अपने आप को धन्य मानता हूँ ।
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