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१६८ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ संदेश
श्रद्धा के प्रतीक
D निर्मलकुमार लोढ़ा (निम्बाहेड़ा) भारतीय संस्कृति के पीछे संतों का बहुत बड़ा योगदान रहा हुआ है। इसी पवित्र भूमि पर महापुरुषों ने साधना द्वारा कर्म-शत्रुओं पर विजय प्राप्त की। प्राप्त आत्म-ज्ञान द्वारा अज्ञान अन्धकार में भटकी हुई आत्माओं को सच्ची राह बताकर उनके जीवन को सुधारा । वही ज्ञान आज भी संत पुरुषों के पास सुरक्षित है एवं हमें समय-समय पर मिलता रहता है।
जैनागमतत्त्वविशारद् प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज का जन्म मालव की ऐतिहासिक नगरी दशपुर की रमणीय स्थली में हुआ।
जैनाचार्य श्री खूबचन्दजी महाराज के वैराग्य-वर्धक धर्मोपदेश को श्रवण कर आपने दीक्षा अंगीकार की। तप-संयम में वृद्धि करते हुए आप जिनशासन की प्रभावना कर रहे हैं। आप शांत स्वभावी, सरल एवं संगठनप्रिय हैं।
आपका अभिनन्दन करते हुए हमें अत्यन्त आनन्द एवं प्रसन्नता होती है । आप दीर्घायु हों एवं हमें मार्ग-दर्शन करते रहें।
पुष्पांजलि
पूनमचन्द जैन, कोटा परम श्रद्धेय करुणासागर मालवरत्न उपाध्याय श्री १००८ पूज्य गुरुदेव श्री कस्तूरचन्दजी महाराज साहब एवं जैनागमशास्त्रविशारद प्रवर्तक पंडितरत्न मुनि श्री हीरालालजी महाराज के पावन चरणों में मेरा शतशः वन्दन स्वीकार हो।
यह जानकर खुशी हुई कि मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ छप रहा है। ऐसे महान् उपकारी संतों के जीवन के पावन प्रसंग छप कर जनता के हाथों में आना ही चाहिये । जिससे अज्ञान अंधकार में भटकने वाले प्राणी सप्रेरणा प्राप्त कर जीवन में नयी चेतना व नया प्रकाश प्राप्त कर सकें । ऐसे ग्रन्थ भावी युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।
महान् त्यागी संतरत्न युग-युग तक हमारे बीच विराज कर अपनी अनुपम साधना से हमें लाभान्वित करते हैं । अन्त में शासनदेव से प्रार्थना है कि ऐसे परम यशस्वी मुनिद्वय स्वस्थ एवं चिरायु होकर जिनशासन को गौरवान्वित करते रहें।
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