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१६६ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ संदेश
एक सच्चा हीरा
परम आदरणीय श्रद्धेय प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज साहब वास्तव में एक सच्चे हीरे हैं। जिन्हें पाकर श्रमण वर्ग ही नहीं अपितु पूरा समाज धन्य हो गया है।
चारित्र की दिव्य एवं अलौकिक प्रभा से अपनी आत्मा को तो आपने आलोकित किया ही, साथ ही अनेक आने वाली भव्यात्माओं को भी अपनी ज्ञान-गरिमा की आभा से आलोकित कर रहे हैं ।
आपके मधुर व्यवहार एवं निश्चल प्रेम में एक अद्भुत आकर्षण शक्ति है कि आगन्तुक मानव आकर्षित हुए बिना नहीं रहता। गुलाब के खिलते हुए पुष्प में वह गन्ध है कि वह सभी को अपनी ओर खींचता वैसे ही आपकी मधुर वाणी की सौरभ को पाकर जनता आकृष्ट होती है।
विनय आपका एक सहज गुण है । सेवा-निरभिमानता एवं ऋजुता से आपका जीवन पुष्प महकता रहा है। मैंने प्रत्यक्ष देखा है
ब्यावर में जब आचार्यदेव श्री खूबचन्दजी महाराज विराजमान थे तब आपने उनकी सेवा का अद्वितीय लाभ प्राप्त किया था। आपकी सेवा-भक्ति अवर्णनीय है। आचार्यदेव ने स्वयं फरमाया था कि-"मेरा हीरा सच्चा हीरा है।"
सचमुच आचार्यदेव की वाणी सत्य हुई, आज आप समाज के बीच एक हीरे के समान चमक रहे हैं, आपको पाकर समाज गौरवान्वित हो रहा है।
मैं अपने भक्ति के चन्द शब्द-सुमन अभिनन्दन के रूप में समर्पित करती हूँ।
-जैन साध्वी
कमलावती कोटा (राजस्थान)
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