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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
संदेश की तरफ ही रहा है । यहाँ तक कि उनके जीवन के कण-कण और अणु-अणु में निर्लोभता एवं परमार्थता का प्रशस्त पीयूष पूरित रहा है । मानो 'स्व पर हिताय - सुखाय' दृष्टि से ही उनके जीवन का निर्माण हुआ है । कहा भी है
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यही है भूमि ऋषियों की,
जहाँ कंचन बरसते थे । विदेशी लोग सुन-सुन कर,
दर्शन को खूब तरसते थे ॥
श्रद्धेय उपाध्याय प्रवर मालवरत्न पूज्य गुरुदेव श्री कस्तूरचन्दजी महाराज एवं श्रद्धेय आगम तत्त्वविशारद् प्रवर्त्तक श्री हीरालालजी महाराज उक्त गुणों की श्रेणी में सुशोभित हैं। आप दोनों महामनस्वी मुनियों की पावन सेवा में रहने का एवं चातुर्मास करने का मुझे कई बार स्वर्णिम अवसर मिला है। मेरी स्थूल आंखों ने आपको सन्निकटता से देखा है । आपका मधुर व्यवहार सभी संतों के प्रति समान रहा है । विशालता, उदारता, समता एवं दयालुता आप दोनों मुनियों की महान् विशेषताएँ हैं । संतों को किस तरह निभाना और किस तरह समझाना यह खूब प्रत्यक्ष मैंने देखा है |
अभिनन्दन ग्रन्थ समारोह के सन्दर्भ में मेरी अन्तरात्मा इन महामुनियों के तपःपूत जीवन की भूरि-भूरि प्रशंसा करती है । आप मुनियों से सदैव चतुर्विध संघ को मार्ग-दर्शन मिलता रहे - यही मेरी शुभेच्छा है ।
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