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शुभ
सन्देश १६५ महानता के तीन गुण
कामना परम श्रद्धेय, मालवरत्न, उपाध्याय, शासन सम्राट् गुरुदेव श्री - कस्तूरचन्दजी महाराज के प्रति अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है, जानकर अति प्रसन्नता है।
गुरुदेव के जीवन की महानता का वर्णन मेरी लेखनी नहीं कर सकती है, फिर भी लिखने को मन हो ही गया। आपके जीवन में अनेक महान्-अति महान् गुण हैं, क्षीरसागर की भांति आप महान् हैं। क्षीरसागर के मुख्य तीन गुण हैं
(१) मधुरता (२) गंभीरता (३) विशालता।
मधुरता-आपके कण-कण में व्याप्त है। आपके मुखाविन्द से सदा ही अमृत-वाणी की वर्षा होती है। आपके प्रत्येक कार्य और प्रत्येक शब्द हितमित और प्रिय होते हैं। आपका हर व्यक्ति, हर समाज एवं हर सम्प्रदाय के साथ मधुर व्यवहार है।
गम्भीरता-विश्व में सागर से बढ़कर कोई गम्भीरता में नजर नहीं आता, कितना भी पानी आए, सब अपने में समा लेता है । अपने अन्दर अतुल धन-राशि लिए हुए चुप-चाप सभी कुछ सह जाता है । ठीक उसी प्रकार आप भी कितनी ही सामाजिक ऊँची-नीची बातों को अपने में समा लेते हैं । आपके चेहरे पर कभी क्रोध नहीं आता। प्रतिपल संयम-साधना में तत्पर रहते हैं।
विशालता-आपका हृदय-मंदिर विशाल है, उसमें करुणा-मैत्री का स्रोत सदा प्रवाहमान है। दु:खियों के दुःख-दर्द को मिटाने का पूर्ण प्रयत्न करते हैं। सम्प्रदायवाद की बू से भी आप परे हैं। जितना हृदय विशाल है, उतना ज्ञान भी विशाल है, सभी आगमों के ज्ञाता हैं और ज्योतिष पर आपका अच्छा आधिपत्य है।
ऐसे क्षीरसागर से भी महान् पूज्य गुरुदेव दीर्घायु होकर जिनशासन के गौरव को उन्नत करते रहें, यही मेरे अन्तरात्मा की पुकार है।
आपका जीवन मधुरता-गम्भीरता-विशालता का साक्षात् प्रतीक है ।
जैन साध्वी कमलावती कोटा (राजस्थान)
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