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स्मृति के कुछ मधुर क्षण
श्रमण संघीय आचार्य सम्राट् पूज्यश्री आनन्दऋषिजी महाराज
नाम की विशेषता कोई महत्ता नहीं रखती है । परन्तु ज्योतिर्विद पंडित रत्न श्री कस्तूरचन्दजी महाराज के लिए यथानाम तथागुण की उक्ति सार्थक है।
सन्देश
जिस तरह कस्तूरी अपनी महक से कलुषित वातावरण को भी महका देती है । उसी प्रकार उपाध्याय श्री कस्तूरचन्दजी महाराज अपने शान्त, सौम्य, व्यक्तित्व के प्रभाव से मानव समाज को सुवासित एवं आलोकित कर रहे हैं ।
लगभग ४०-४५ वर्ष पूर्व की स्मृति है । जिस समय मैं ( आनन्दऋषि) अपने गुरुदेव के साथ वृद्ध साधु-सम्मेलन अजमेर में पहुँचा । वहाँ आपसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । यह हमारा ज्योतिर्विद श्री कस्तूरचन्द जी महाराज के साथ पहला मधुर मिलन था ।
उस समय वहाँ कई प्रान्तों के महामनस्वी मुनि एकत्र हुए थे । आवश्यकतानुसार ज्योतिर्विदजी भी अधिकांश मुनियों के साथ बहुत ही आत्मीयता के साथ विचार-विमर्श करते थे । हमारे साथ भी किये हुए उस मधुर व्यवहार की स्मृति आज भी हृदय-पटल पर अंकित है ।
उसके बाद छह सम्प्रदायों का सम्मेलन जब ब्यावर में हुआ था । उस समय आपश्री की स्पष्ट वाणी में विचार-धाराओं को श्रवण करने का अवसर मिला। तब मुझे आभास हुआ था कि आपश्री सद्गुणों के ग्राहक हैं और पदलिप्सा से कोसों दूर हैं ।
श्रमण संघ की एकता, अनुशासन आदि मर्यादाओं का पालन करने में उनका सहयोग हमेशा सराहनीय रहा है ।
ज्योतिर्विदजी म० को जो अभिनन्दन ग्रन्थ अर्पित किया जा रहा हैवह अभिनन्दन उनके गुणों का अनुशासन, एकता तथा संगठनप्रियता का हो रहा है । इस शुभावसर पर मैं हार्दिक शुभकामनाओं को प्रेषित कर रहा हूँ । इस भव्य विभूति का मार्गदर्शन समाज को निरन्तर मिलता रहे ताकि इनके सहयोग से श्रमण संघ रूपी रत्नाकर अपने गंतव्य की ओर प्रगतिशील बना रहे ।
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शुभ
कामना
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