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१५६ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ संदेश संत जीवन को शत-शत प्रणाम
सदियों से इतिहास बता रहा है--संत जीवन, मानव-समाजोत्थान में एवं संस्कृति-सभ्यता के विकास में बहुत बड़ा सहायक रहा है। देहधारी प्राणी जब चारों ओर से निराशान्वित हो जाता है, तब 'डूबते हुए को तिनके का सहारा' के अनुसार उस प्राणी के लिए संत-जीवन रूपी किरण ही सहायक बनती है । शत-प्रतिशत उसे आत्मविश्वास रहता है कि मुझे सभी ठुकरा सकते हैं, पर संत के शरण में अवश्य आश्रय मिलेगा। वहाँ मेरी व्यथा की कथा सुनी जायगी, समझी जायगी एवं उचित उपचार भी। इसलिए कहा है-'संत हृदय नवनीत समाना' अर्थात् पर-पीड़ा को देखकर संत का दयावान हृदय निर्झर की भांति बहने लग जाता है।
मुनिद्वय-मालवरत्न पूज्य उपाध्याय श्री कस्तूरचन्दजी महाराज एवं जैनागमतत्त्वविशारद प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज उसी महिमावंत धवल गौरव परम्परा के प्रतीक रहे हैं। जिनकी लम्बी तपःपूत साधना स्थानकवासी जैन समाज के विकास एवं प्रकाश में बहुत बड़ी सहायक रही है।
हमारा संघ मुनिद्वय का सश्रद्धा-सभक्ति हार्दिक अभिनन्दन करता हुआ शुभ भावना अभिव्यक्त करता है कि आप मुनिराज दीर्घजीवी बनें।
-श्री व० स्था० जैन श्रावक संघ
मंत्री माणकचन्द जैन, (एम. ए.) __ सवाई माधोपुर
हार्दिक अभिनन्दन मालवरत्न ज्योतिषाचार्य उपाध्याय पूज्य गुरुदेव श्री कस्तूरचन्द जी महाराज साहब एवं जैनागमतत्त्वविशारद प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज साहब-युगल मुनि प्रवरों का अभिनन्दन करते हुए हमारे रूपनगर श्री संघ को परमानन्दानुभूति हो रही है।।
आप मुनिद्वय ने अपने दीर्घ संयमी जीवन में अनेक गांव-नगरों में धर्म-प्रचारार्थ परिभ्रमण किया। अनेक भव्यों को प्रतिबोध प्रदान कर महान् उपकार किया है।
आपके अभिनन्दन समारोह पर हमारा संघ आपके दीर्घ संयमी जीवन की मंगल कामना करता है।
अध्यक्ष हस्तीमल कुचेरिया
जबरसिंह बरडिया श्री वर्द्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, रूपनगर (राजस्थान)
__ मंत्री
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