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संदेश
मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
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मालवरत्न गुरुदेव श्री कस्तूरचंदजी महाराज
कोटि कोटि वन्दन करूँ, श्री सद्गुरु चरणार । श्रद्धा भक्ति प्रेम के, धरू पुष्प उपहार ॥ पद पंकज की सुरभि से, सुरभित हुआ समीर । श्री चरणन के स्पर्श से, पावन गंगा नीर ॥
मृदुपद नख की ज्योति से, दस दिशि होत प्रकाश । पाद - पद्म के स्मरण से, होता भव भय नाश || चरण रेणु धरि सीस पर, उघड़त नयन विवेक । संशय भ्रम बहि जात है, सब में सूझत एक ॥
सकल गुणों के धाम हैं, महिमा अगम अपार । विधि हरि हर अरु शेष भी, पाय सके नहीं पार ॥ टेक |
एक ॥।
- शिरोमणि चंद्र जैन
दीनबन्धु करुणायंतन, भक्त जनों की प्रेम भक्ति अवतार हैं, संत शिरोमणि
जैनागमतत्त्वविशारद प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज
शशि शीतल श्री चरण हैं, श्री नख ज्योति अपार । दण्डवत वन्दन मैं करू, भक्तन के
आधार ॥
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सद्गुरु चरण स्पर्श से होता हर्ष अपार । नाम मंत्र की नाव से, करते हैं भव पार ।। विश्वरूप गुरुदेव जी, निराकार अमित है महिमा आपकी, अगम अनंत अति कोमल मृदुगात है, महाबाहु शुचि भाल । आयत वक्ष सुरम्य है, उन्नत नयन विशाल || नमस्कार ते मिटत हैं, रोग-शोक त्रय ताप | मानस निर्मल होत है, उर में रहत न पाप ॥ पुनि पुनि वन्दो गुरुचरण, जो है अग जग टेक | जाके सुमिरन से करें, आवागमन
अनेक ॥
- शिरोमणि चंद्र जैन
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साकार ।
अपार ॥
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