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१०४ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ होती हैं। ठीक उसी प्रकार धर्म की दुकान के विषय में भी समझना चाहिए। धर्म की पवित्र दुकान पर प्राणीमात्र के लिए शिवपुरी अर्थात् मोक्ष में जाने के नानाविध साधन प्राप्त होते हैं । इसीलिए धर्म की दुकान को सर्वोत्तम-सर्वोपरि कहकर सभी धर्म-प्रवर्तकों ने धर्म की भूरि-भूरि प्रशंसा की। अष्ट प्रवचनमाता
जैसे माता अपनी संतति का पालन-पोषण करती है उसी प्रकार यह आठ प्रवचन माताएं चारित्र का पालन-पोषण करती हैं। यह समिति गुप्ति रूप अष्ट विध आचार समग्न चारित्र का मलाधार है। जो इनका स्वरूप समझकर ठीक तरह से पालन करता है उसकी भी रक्षा हो जाती है। यह अष्ट प्रवचनमाता आत्मा को दुर्गति में जाने से बचाती है। ईर्या समिति का अर्थ है-साढ़े तीन हाथ जमीन देखकर चलना, भाषा समिति का अर्थ है-सोच-विचार करके निर्दोष वचन बोलना, आहार सम्बन्धी-शुद्धि को एषणा समिति कहते हैं । मल-मूत्र आदि को निर्जीव भूमि में उत्सर्ग करना परिष्ठापनिका समिति है । मन-वचन-काया को अप्रशस्त व्यापार से रोकना तीनों प्रकार की गुप्ति है। श्रद्धा का संबल
शास्त्रों में अनेक विषयों का प्रतिपादन है, जिनके विषय में हमारी बुद्धि और तर्क का प्रवेश हो सकता है और उन पर तर्क से विचार भी किया जाता है। परन्तु कुछ बातें ऐसी भी हैं जो तर्कगोचर नहीं होतीं। उनको आगम के प्रमाण के आधार पर ही स्वीकार करना चाहिए । जो वीतराग और सर्वज्ञ हैं, उनके कथन में कोई दोष नहीं आ सकता। वह मिथ्या नहीं हो सकता। सर्वज्ञ की वाणी जिन्होंने स्मरण (याद) रखी और बाद में सूत्रबद्ध की है। वे महात्मा भी नि:स्वार्थी थे। कहिए-क्या मिथ्या वस्तु का प्रचार करने में उनका कोई प्रयोजन था ? नहीं। अतएव उनकी प्रामाणिकता में किसी प्रकार का सन्देह न करते हुए श्रद्धा रखनी चाहिए। अनेक विषय ऐसे हैं जिनकी सत्यता को वर्तमानकालीन वैज्ञानिकों ने भी पुष्टि प्रदान की है। कई विषय ऐसे भी हैं जिनके सम्बन्ध में वैज्ञानिक मान्यता भिन्न प्रकार की है परन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विज्ञान ने सत्य की कोई सीमा (रेखा) नहीं खींच दी है । विज्ञान सत्य की खोज में लगा है और आज जो उसे सत्य प्रतीत होता है, कल अधिक खोज करने पर वह असत्य भी हो सकता है। वैज्ञानिक नम्रतापूर्वक अपनी मान्यता बदल लेता है। ऐसी स्थिति में हमें अपनी श्रद्धा से विचलित होकर अपना अहित नहीं करना चाहिए। जैसा माल : वैसा मूल्य
जिसके पास जैसी वस्तु है वैसी ही वह दूसरों को दे या दिखला सकता है । जो बाटा कम्पनी की दुकान पर जायगा, उसे तरह-तरह के जूते दिखलाये जायेंगे, आप लेना चाहें तो ले लें, अन्यथा.उसकी वस्तु उसके पास है । तो जैसे बाटा वाले के पास जूते हैं, वैसे ही क्रोधी के पास क्रोध भड़काने वाले शब्द हैं । तुम उसके शब्द मत ग्रहण करो, उसके उस
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