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अभिनन्दन पत्र
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प्रातः स्मरणीय परमादरणीय श्रीमज्जैनाचार्य स्वर्गीय पूज्य श्री खूबचन्दजी महाराज साहब के गुरुभ्राता स्व. पं० मुनि श्री लक्ष्मीचन्द जी महाराज सा० के स शिष्य श्रमण संघीय जैनागमतत्त्वविशारद मधुर व्याख्यानी पं० मुनि श्री हीरालालजी महाराज साहब के चरण कमलों में सादर समर्पित
गुरुवर्य ! हमारा यह अहोभाग्य रहा है कि आपश्री मद्रास का चातुर्मास समाप्त कर सुदूर दक्षिण में जैनधर्म का प्रचार करते हए एक बार फिर हमारी विनती को मान देकर बेंगलोर शहर में चातुर्मासार्थ पधारे ।
आपने अपनी सरल एवं रोचक भाषा में अनेक हेतु दृष्टान्तों के साथ जैनागम के गहन तत्त्वों को श्रोताओं के सम्मुख रखकर भलीभाँति समझाने का प्रयास किया, शत-शत प्रणाम है आपकी इस विद्वत्तापूर्ण मधुर वाणी को।
आपके ओजस्वी व्याख्यानों से प्रेरित होकर धर्म-ध्यान, शान्ति-सप्ताह एवं बडी-बड़ी तपस्याओं की आराधना हुई। श्रीमती धापुबाई (धर्मपत्नी श्रीमान् जसराज जी गोलेच्छा) ने इक्कावन उपवास की अद्वितीय तपस्या कर समाज की शोभा में चार चाँद लगा दिये। यह सभी आप ही का प्रताप है, आप धन्य हैं।
आपके सुशिष्य पं० मुनि श्री लाभचन्दजी महाराज साहब ने एकान्तर की तपस्या की आराधना के साथ ही साथ छटकर तपस्या करके अपनी आत्मा को निर्मल बनाया है और साथ में "श्रावक व्रत अभियान" का भी प्रचार प्रारम्भ रखा जिसके फलस्वरूप यहाँ लगभग ५०० श्रावक श्राविकाओं ने बारह व्रत अंगीकार किये। गुजराती बन्धुओं ने बारह व्रतों की विशेष उपयोगिता समझकर करीब दो हजार पुस्तकें गुजराती में प्रकाशित करवाने का निश्चय किया है। अनेक धर्म प्रेमियों को इससे लाभ होने की सम्भावना है। हम आपका आभार मानते हुए यह आशा करते हैं कि आपका यह अभियान निरन्तर चालू रहेगा।
पूज्यवर ! आपने जब भारत के पूर्वी भाग—कलकत्ता आदि का प्रवास किया था तब मुनिराजों की सुविधा हेतु "बङ्ग-विहार" नामक मार्ग-प्रदर्शिका प्रकाशित करवाई थी उसी प्रकार आपश्री के सौजन्य से "दक्षिण विहार" नामक पुस्तिका प्रकाशित करवाने की व्यवस्था की है और शीघ्र ही समाज की सेवा में प्रस्तुत की जायगी, दक्षिण में विचरण करने वाले संत मुनिराजों के लिए यह एक वरदान सिद्ध होगी। आपके इस सौजन्य के लिए अनेकशः धन्यवाद हमारी ओर से समर्पित हैं।
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