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श्रद्धार्चन १३१ जी महाराज' के ५० वर्षीय संत-जीवन के उपलक्ष में जो यह 'अभिनन्दन ग्रन्थ' का प्रकाशन हो रहा है यह हमारे लिए गौरव का विषय है। ऐसे प्रकाशन इसीलिए प्रकाशित किये जाते हैं कि भावी जनता उस समय कर्मठ त्यागी-संयमी संत के प्रति कुछ जान सके इस महान दिव्य ज्योति के जीवन से प्रेरणा लेकर जन-मानस अपने आपको उज्जवल एवं उन्नत बना सकें।
बाल्य जीवन परम श्रद्धेय प्रवर्तक श्री हीरालाल जी महाराज का शुभ जन्म मध्य प्रदेश के महानगर मन्दसौर की पवित्र भूमि में हुआ है । आपका शैशवकाल सुख के क्षणों में बीता। पिता लक्ष्मीचन्दजी और मातु श्री हगामबाई की आप पर अद्वितीय कृपा एवं देख-रेख थी। जिस प्रकार तात-मात धार्मिक संस्कार वाले थे उसी प्रकार पुत्र हीरालाल का जीवन भी धार्मिक संस्कारों से ओत-प्रोत प्रतिभावित होने लगा । बाल्यकाल में ही आपको त्याग-तप-वैराग्य व सत्संगति इष्ट थी। यही कारण था कि धार्मिक ज्ञान प्राप्ति की रुचि सदैव बनी रहती थी।
गुरुदेव और दीक्षा आप अभी केवल १५ वर्ष के ही थे। तभी आपश्री की वैराग्य भावना अति प्रबल हो गई और आप अपने पिताश्री के साथ रामपरा की रम्य स्थली में ईस्वी सं० १९२२ आचार्य श्री खूबचन्दजी महाराज के पावन सान्निध्य में दीक्षित बन गये। आचार्य देव की सेवा में रहकर आपश्री ने धीरे-धीरे अच्छा अध्ययन किया । हिन्दी-प्राकृतसंस्कृत एवं गुजराती भाषाओं में अच्छी योग्यता प्राप्त की। साथ-साथ विनय-विवेक गुण भी विकसित होते गये। उन्हीं आचार्यदेव के शुभाशीर्वाद से आपके व्याख्यान प्रभावशील होने लगे। मुझे भी कई बार व्याख्यान श्रवण का लाभ मिला है। श्रोता मंत्रमुग्ध हुए बिना नहीं रहते।
स्नेह सौजन्यता के प्रतीक आपश्री का स्वभाव बड़ा सरल एवं मधुर है। भले गरीब हो कि-अमीर एवं बाल हो या वृद्ध, सभी के प्रति आपका व्यवहार बड़ा सुखद है। समता के तो आप सागर हैं। कई बार आपके और दिगम्बराचार्य श्री सूर्यसागरजी महाराज के संयुक्त व्याख्यान दिल्ली के प्रांगण में हुए हैं। दिल्ली की समाज आज भी उस प्रसंग को याद करती हुई फूली न समाती है।
__ इन दिनों आपश्री श्रमण संघ के प्रवर्तक पद पर विराजमान हैं। भारत के अधिकांश प्रांतों में आपका भ्रमण हआ है। सत्य और अहिंसा के अमर सन्देश को आपने क फैलाय
है। जैन समाज सदा आपके इस महान शासन प्रभावना को कभी भी नहीं भूल सकता है।
हार्दिक भावना ___ मेरी हार्दिक मंगल भावना है कि तत्त्वविशारद प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज दीर्घकाल तक भगवान महावीर स्वामी के आदर्श सिद्धान्तों का एवं श्रमण संस्कृति का शंखनाद करते रहें। आप अपने में एक आदर्श मुनि, आदर्श त्यागी, आदर्श मनस्वी और आदर्श साधक हैं।
__ मैं आपके प्रति हार्दिक श्रद्धा अभिव्यक्त करता हूँ। मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ प्रवर्तकश्री जी की समाज सेवाओं का एक मूल्यांकन माना जायगा।
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सुदूरत
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