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संदेश
मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
श्री कस्तूरचन्दजी महाराज साहब के साथ आपका भी अभिनन्दन होना आपकी त्याग-तपस्या का प्रताप ही परिलक्षित होता है ।
अतः ऐसे महान् संतों को सन्मानित करना एवं अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट करना हमारे लिये एक अत्यन्त गौरव की पुण्य वेला है ।
इस महान् एवं अविस्मरणीय अवसर पर आत्मा की अनन्त गहराइयों में से यही प्रार्थना करता हूँ कि युग-युगों तक आप जैसे महान् संतों का सान्निध्य, शरण और मार्गदर्शन मुझे तथा प्रत्येक मानव को प्राप्त होता रहे । हमारा यह सौभाग्य रहे कि हम अपनी समस्त सेवा भक्ति आपश्री के चरणों में अर्पित करते हुए अपने आपको कृतार्थं समझें ।
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आपका भक्त सुजानमल सेठिया नयापुरा चौक, उज्जैन, ( म०प्र०)
अभिवन्दना
जैन समाज में एक मधुर सूक्ति अत्यन्त प्रसिद्ध है" षटकाया ना पियर"
अर्थात् साधु-साध्वी छः काया के पीहर हैं । वास्तविक रूप से इस बात में चमत्कारिक सत्यता है । पीहर में पुत्री पूर्णरूप से निर्भय, सुरक्षित एवं पोषित होती है । उसका जीवन समय आमोद-प्रमोद के साथ व्यतीत होता है । ठीक इसी प्रकार छः काया भी साधु-साध्वी के रूप में पितृ कुल पाकर सदा-सर्वथा चैन से जीवन यापन करते हैं ।
हमारे परम श्रद्धेवर्य पंडितरत्न मालवरत्न ज्योतिर्विद् उपाध्याय श्री कस्तूरचन्दजी महाराज के व्यक्तित्व की महान शोभा और भी बढ़ जाती है जबकि हम पाते हैं कि वे छ: काया के ही पीहर नहीं है वरन् इससे भी ऊपर उठकर वे मानव समाज के लिये भी पीहर के समान हैं ।
आपकी दया एवं करुणामयी भावना की साकारता से सभी परिचित हैं । निर्धन तथा दुःखी साधर्मी भाई-बहिनों की सहयोग सेवा का प्रवृत्ति - पाठ आपने सुन्दरतम ढंग से समाज में फैलाया । आज कई सम्पन्न व्यक्ति अपने ही भाई-बहिनों की आर्थिक दान की सेवा करते अघाते नहीं हैं । दान देने के स्रोत संदेश के लिये कई जन आपके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं । असहाय वर्ग भी आपश्री का पूरा-पूरा उपकार मानते हैं । अत: आपको प्राणी मात्र का भी सच्चा पीहर कहा जाये, तो कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है ।
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