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सिद्धांत-साधना के वरिष्ठतम मुनि !
जैन सिद्धान्त सार्वभौम सिद्धान्त है । इस सिद्धान्त की सहजतम महानता इसी में है, कि यह संघर्ष को नहीं, वरन् समन्वय को महत्त्व देता है । इस समन्वय का शृङ्गार यदि धरती पर कर दिया जाये, तो स्वर्ग की शोभा हमें सर्वत्र दिखाई दे जाये । जैनागम के सत्य सिद्धान्त बिखराव - अलगाव की भूमिका वाले जीवन में साधना की एकरूपता एवं एकसूत्रता का बीजारोपण कर देते हैं जिससे कि अध्यात्म विज्ञान हरदम फलता चला जाये ।
इस जैन जीवन विज्ञान के पोषक, प्रवर्तक, जैनागमतत्त्वविशारद, पंडितरत्न श्रद्धेय श्री हीरालालजी महाराज सुदीर्घ संयम साधना के एक वरिष्ठतम मुनिगण हैं । आपके पास प्रतिपल सिद्धान्त-साधना की ज्योति प्रकाशित मिलेगी । आगमों की स्वाध्याय एवं चिंतन पूर्ण तात्त्विक चर्चा में आपकी प्रिय रुचि रहती है। इस उज्ज्वल दर्शन के आप उद्भट विद्वान हैं । अनेक साधु-साध्वी आपसे आगम वाचना द्वारा महाज्ञान से प्रवेश परिचय पाते हैं ।
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आपके द्वारा संघ एवं समाज में निरन्तर ही ज्ञान-दर्शन एवं चारित्र की ओजस्वी त्रिवेणी प्रवाहित हो रही है । भव्य प्राणियों की सुप्त चेतना को आपने जागरण की नयी दिशा दी है, प्रेरणा प्रतिबोध का प्रखर प्रकाश दिया है ।
इन्हीं मुनिपुंगव को आज की स्वर्णिम वेला में हम प्रणम्य अभिनन्दन सादर समर्पित करते हुए हार्दिक कामना प्रगट करते हैं, कि आप युग-युगों तक जैनत्व - साधना की महानता का परिचय इसी भाँति प्रदान करके विश्व - अभ्युदय की ओर अग्रसर करते रहें ।
सुजानमल चाणोदिया
अध्यक्ष :
सन्देश
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बापूलाल बोथरा मंत्री
श्री जैनदिवाकरजी महाराज का श्रावक संघ नीमचौक : रतलाम ( म०प्र०)
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शुभ
कामना
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