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या
मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
पूज्य कस्तूरचन्दजी महाराज साहब एवं प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज साहब का अभिनन्दन ग्रन्थ पूज्य रमेश मुनिजी सिद्धान्त आचार्य साहित्यरत्न द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है, यह बाँचकर मुझे अत्यन्त प्रसन्नता हुई।
ऐसी पुण्यात्मा विभूतियों की अत्यन्त ज्वलन्त कीति है और उनके बताये गये मार्ग पर चलने से निःसन्देह कर्म बन्धन से मुक्ति पा सकते हैं। ऐसी विभूतियों के प्रति आपने जो भाव व्यक्त किये हैं, वे सचमुच प्रशंसनीय हैं। ईश्वर इन दोनों पुण्यात्माओं को खूब आयुष्मान करे और जन-मानस में धर्म भावना का प्रादुर्भाव हो यही मेरी ईश्वर से प्रार्थना है ।
-सुगनमल भण्डारी, इन्दौर
सद्धा सभक्ति अमिनन्दन मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ की रूपरेखा से मालूम हुआ कि निकट भविष्य में मालवरत्न उपाध्याय प्रवर श्रद्धेय गुरुदेव श्री कस्तूरचन्दजी महाराज एवं प्रवर्तक प्रवर श्रद्धेय संत रत्न श्री हीरालालजी महाराज मुनि युगल के पावन कर-कमलों में अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पण किया जा रहा है। यह सुनकर मेरे अन्तर्मन को हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हुआ ।
श्रद्धेय मुनिवरों की हमारे परिवार पर महती कृपा रही है। कई बार आप मुनिवरों का नयापुरा उज्जैन में पदार्पण हुआ है। अनेक बार आपकी मधुर वाणी का रसास्वादन करने का मुझे परम सौभाग्य मिला है। आपकी वाणी जहाँ प्यासों के लिए पानी का और बुभुक्षुओं के लिए भोजन का काम करती है वहाँ जन्म-जरा और मृत्यु से भयभीतों के लिए राम बाण औषधि और अभय का काम भी करती है।
मुझे अच्छी तरह याद है-आप जब नयापुरा स्थानक में पधारे थे तब स्व० मेरे पूज्य पिता श्री पांचूलालजी घंटों तक अपकी पर्युपासना एवं तत्त्वगोष्ठी में लगे रहते थे। पिताश्री फरमाया भी करते थे कि इतने बड़े संत होने पर भी जीवन में किचित्मात्र भी अभिमान को स्थान नहीं, बालक हो या युवक, वृद्ध, धनी हो या निर्धन हो, परिचित हो या अपरिचित सभी के साथ एक समान आत्मीयता एवं वात्सल्य पूरित वाणी का व्यवहार जो देखते एवं सुनते ही बनता है। मेरे पूज्य पिताश्री पर आपकी अपार कृपा दृष्टि रही है। आज भी मेरे परिवार पर वही कृपा, वही शुभ दृष्टि है। मैं सश्रद्धा सभक्ति मुनिद्वय का हार्दिक अभिनन्दन करता हुआ शासनदेव से प्रार्थना करता हूँ कि मेरे आराध्य मुनिद्वय सदा हमें मार्गदर्शन प्रदान करते रहें।
विनीत -संतोषचन्द्र चपलोद
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