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संस्मरणों के प्रकाश में ११३ बड़े गन्दे रहते हैं। इसलिए हमारे मन में जैन साधुओं के प्रति भ्रान्तियां थीं। बहुत दिनों से पूछने की इच्छा रही, पर आप जैसे साधुओं का समागम नहीं मिला। आज हमने आपकी शांत सूरत देखी तो आपसे पूछने के लिए हमारा साहस हो गया। आपने ठीक कहा-शरीर कभी भी पवित्र होता ही नहीं है। ब्रह्मचर्य रूपी पानी में स्नान करने से ही आत्मा की शुद्धि होती है। यही वास्तविक शुद्धि है। हमें क्षमा कीजियेगा । हमने आपका काफी समय लिया। ऐसा बोल कर वे चलते बने।
साधुत्व का परिचय इन दिनों बंगाल प्रांत के वासियों पर अपेक्षाकृत अनार्य संस्कारों का अधिक प्रभाव प्रत्यक्ष देखा जा सकता है । वस्तुतः दुष्परिणाम यह हुआ कि आर्य-संस्कृति वहाँ से लुप्त होती गई और व्यसन, फैशन, मद्य, मांस का प्रचार अधिक होता गया। इस कारण यहां के निवासी जैनधर्म एवं जैन मुनियों से सर्वथा अनभिज्ञ रहे और न उन्हें जैन मुनियों का सम्पर्क ही मिला । ऐसी स्थिति में भ्रांतिवशात् वहाँ के निवासी यदि जैन भिक्षु को चोर-लुटेरे और पाकिस्तान-चीन के गुप्तचर मान लें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
उन दिनों ऐसी ही घटना प्र० श्री हीरालालजी महाराज के साथ घटित हुई। साथ में न भक्तों का झमेला था और न कार-मोटरों की गड़गड़ाहट ही। बिल्कुल सीधे-सादे विहार करते हुए आपश्री अजीमगंज से कलकत्ते की ओर पधार रहे थे।
बीच मार्ग में एक अनभिज्ञ थानेदार अपने कुछेक साथियों के साथ सामने आ खड़े हुए-"तुम लोग पाकिस्तान के गुप्तचर मालूम पड़ रहे हो, तभी तो मुह बँधे हुए हैं। जरा ठहरो ! अगर आगे बढ़ने की चेष्टा की तो साथ में जास्ती की जायगी। इधरउधर यह क्या बाँध रखा है ?"
___ "हम जैन साधु पैदल ही परिभ्रमण करते हैं । अब कलकत्ते की ओर जा रहे हैं।" मुस्कान भरते महाराजश्री ने कहा।
“साधु-वादु हम कुछ नहीं जानते; साधुवेश में भी बहुत से देशद्रोही घूमा करते हैं । साधु हो तो कुछ चमत्कार...........?"
"पाखंडी जन चमत्कार बताकर भद्र जनों को ठगा करते हैं, साधुजन नहीं।" पुनः महाराजश्री ने कहा ।
"तुम साधु हो, इसका प्रमाण-पत्र तुम्हारे पास है क्या ?" सारे उपकरणों की तलाशी होने लगी। संयोगवशात् बंगाल के गवर्नर एस. सी. मुकर्जी हाथ जोड़कर मुनिमण्डल के समक्ष वार्तालाप करते हुए का एक संयुक्त फोटू निकल आया। मन-ही
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