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श्रद्धार्चन १२५ सिद्धान्तप्रिय संत-श्री हीरालालजी महाराज
] मधुर वक्ता श्री ईश्वर मुनिजी कई बार मुझे प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज के पावन सान्निध्य में रहने का, चौमासा करने का, दर्शन एवं उनके आध्यात्मिक प्रवचन श्रवण करने का स्वर्णिमावसर प्राप्त हुआ है । आपके साधक जीवन की डायरी के महकते पृष्ठ मैंने अति सन्निकटता से देखे हैं । आपका स्नेहशील व्यक्तित्व सरलता, ऋजुता एवं सिद्धान्तप्रिय गुणों से ओत-प्रोत हैं, अतएव भव्यों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है।
आपकी सैद्धान्तिक अभिरुचि बढ़ाने में आचार्य प्रवर श्री खूबचन्द जी महाराज साहब का पूर्ण योगदान रहा है। जिनकी महती कृपा से हमारे चरित्रनायक को प्रारम्भिक साधु जीवन में ही कई आगम कंठाग्र हो चुके थे। अद्यावधि आगम पठन-पाठन की वैसी ही रुचि आप श्री के जीवन में परिलक्षित होती है। यथावसर आप रात्रि में किंवा दिन में चिंतन-मनन एवं स्वाध्याय में रमण-शील रहते हैं । जैसा कि आगम में कहा है-'नाणी संजम सहिओ, नायव्वो भावओ समणो।' जो ज्ञान पूर्वक संयम की साधना में रत है, वही श्रमण कहलाता है।
अनेक बार आपके प्रवचन-पीयुष का पान करने का मुझे सौभाग्य मिला है। प्रायः आपके प्रवचनों में आत्म-धर्म एवं दर्शन से सम्बन्धित तात्त्विक विश्लेषण की एवं आगमसम्मत उदाहरणों की मुख्यता रहती है। श्रोतावृन्द मंत्रमुग्ध हुए बिना नहीं रहते हैं । आपको यदि कहीं शास्त्रों के प्रतिकूल व्यवहार परिलक्षित होता है तो आप स्पष्ट फरमा दिया करते हैं कि ऐसा आचरण साधक जीवन के लिए उचित नहीं है। जैसा कि शास्त्र में कहा है
तो समणो जइ सुमणो, भावेण य जइ ण होइ पावमणो । सयणे अ जणे अ समो, समो अ माणावमाणसु ॥
__ (अनुयोगद्वार १३२) -जो साधक मन से सुमन (निर्मल मन वाला) है, संकल्प से कभी पापोन्मुखी नहीं होता, स्वजन तथा परजन में, मान एवं अपमान में सदा सम रहता है-वह श्रमण है।
मैं आपके आचार-विचार-व्यवहार से काफी प्रभावित हुआ हूँ। जिसका मुख्य कारण यह है कि आपकी कथनी और करनी अर्थात्-आपके बहिरंग और आन्तरिक जीवन में सामजस्य मैंने देखा है। 'उवसमसारं खु सामण्णं' अर्थात् श्रमणत्व का सार है-उपशम । तदनुसार आपका जीवन सरल और सौम्य है।
इन दिनों पूज्य प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज साहब जैन-सिद्धान्त के नियमोपनियमों का सम्यक् प्रकार से पालन करते हुए अपने संयमी जीवन के ५५ वसंत सम्पन्न करके ५६वें वसन्त में मंगल प्रवेश कर रहे हैं । उनके संयमी जीवन की गौरवमय पावन घड़ियों में अभिनन्दन समर्पण की जो योजना तैयार हो रही है। मैं इन मुनि प्रवर्तक के चरण सरोज में श्रद्धा-सुमन समर्पित करता हुआ दीर्घ संयमी जीवन की मंगल-कामना करता हूँ।
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