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१२६ मुनिद्वय अमिनन्दन ग्रन्थ हार्दिक अभिनन्दन D कांति मुनि, 'जैन साहित्य विशारद',
अनादि काल से अपनी धार्मिक विशिष्टता के कारण प्रख्यात भारत आज भी विश्व की धर्मप्राण जनता के लिये केन्द्रबिन्दु बना हुआ है। जहां भारत ने भूतकाल को महावीर, गौतम, जैसे महान धर्म-रत्न प्रदान किये वहीं वर्तमान में भी भारत अनेक महामनीषियों से सुशोभित है।
भारत की विविध धार्मिक संस्कृतियों में जैन संस्कृति का एक प्रमुख स्थान है । जैन संस्कृति के विकास एवं विस्तार में जितने महापुरुषों ने अपने सम्पूर्ण जीवन का समर्पण किया उतना अन्य संस्कृतियों में दृष्टिगत नहीं होता है। त्याग एवं वैराग्य के द्वारा जैन संस्कृति को विश्व में दैदीप्यमान करने वाले महापुरुषों की पावन परम्परा में जैनागमतत्त्वविशारद प्रवर्तक पं० रत्न श्रद्धेय श्री हीरालालजी महाराज भी एक महत्त्वपूर्ण साधक हैं।
___ महामनीषी प्रवर्तकश्री जी महाराज के त्यागमय जाज्वल्यमान जीवन के बारे में कुछ भी लिखना सूरज को दीपक दिखाने के समान है। शांत-स्वभावी, वात्सल्यहृदयी, दीर्घ संयमी, संत प्रवर के जीवन की अच्छाइयों एवं महानता को देखकर तो बस, मस्तक श्रद्धा से नत हो जाता है।
सौभाग्य एवं हर्ष का विषय है कि आज हम एक धर्मदूत का हार्दिक अभिनन्दन कर रहे हैं। इस पावन सन्दर्भ पर मैं भी जैन समाज की इस महान विभूति का अन्तर् की गहराई से हार्दिक अभिनन्दन करता हुआ दीर्घ संयमी जीवन की कामना करता हूँ।
नये सूरज की नई किरण से तुम्हारा अभिनन्दन करता हूँ। विश्व समराङ्गण में खौलते खून से अभिनन्दन करता हूँ । धर्म टिका है इस धरा पर तुम जैसे मानव से, ऐ महासंत । तन से मन से कर बद्ध हो तुम्हारा अभिनन्दन करता हूँ।
प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज - वीरपुत्र श्री सोहन मुनिजी महराज (सि० प्रभाकर)
परिवतिनि संसारे, मृतः को वा न जायते ।
स जातो येन जातेन, याति वंश: समुन्नतिम् ॥ इस परिवर्तनशील संसार में जन्म और मृत्यु की बीमारी से कोई मुक्त नहीं है। परन्तु इस धवल धरा पर जन्म धारण करना उसी का सार्थक माना गया है जिसके द्वारा वंश-परम्परा धर्म के क्षेत्र में विकास पाती हो।
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