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११६ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
सभी श्रोता तन्मयतापूर्वक चर्चा श्रवण कर बोले- "आपका फरमाना यथार्थ लगता है। कर्मानुसार ही प्राणी सुख किंवा दुख पाता है। ईश्वर को कर्ता मानने की अपेक्षा मार्गदर्शक मानना अधिक उचित लगता है।"
सभी ने नतमस्तक होकर घर की राह ली। आगमिक प्रश्नोत्तर
उक्त घटना सं० २००२ से सम्बन्धित है। महाराजश्री अपने शिष्य परिवार के साथ राजकोट (गुजरात) में धर्म-शासन की अद्वितीय प्रभावना फैला रहे थे। उन दिनों बड़ी सादड़ी (मेवाड़) में पूज्यश्री मन्नालालजी महाराज के सम्प्रदाय का प्रवर्तक पद आप (श्री हीरालाल जी महाराज) श्री को प्रदान किया गया। जब यह सूचना राजकोट श्रीसंघ को तार द्वारा प्राप्त हुई तो सकल संघ के हर्ष का पार नहीं रहा । आपश्री का अभिनन्दन कर स्थानीय संघ अपने आप में गौरवान्वित हुआ।
___ यहीं मोरवी से हीराचन्द लक्ष्मीचन्द कापडिया के जैनदर्शन सम्बन्धी कुछ लिखित प्रश्न आये । जिनका लिखित प्रत्युत्तर दिया गया । उक्त प्रत्युत्तरों से वे प्रवर्तक श्री के शास्त्रीय ज्ञान से बहुत प्रभावित हुए । यहाँ प्रश्न और उत्तर दोनों सर्व साधारण के बोधार्थ देना उचित ही रहेगाप्रश्न- (१) “गणधरों के नाम सप्रमाण आगमों में से बतलावें ?" उत्तर- १४५२ गणधर इस चौबीसी में हुए हैं। उनके नाम आगमों में नहीं
मिलते हैं। प्रश्न- (२) जीवात्मा को शुक्लपक्षी कब से हुआ मानना ? उत्तर- अनादि मिथ्यादृष्टि जीवात्मा जब प्रथम बार सम्यक्त्व का स्पर्श करता
है, तब..." प्रश्न- (३) ऐसी कौनसी आत्मा हुई है, जो गृहस्थाश्रम में और साधु अवस्था में
बराबर वर्ष जीवित रही? उत्तर- भगवान महावीर के पांचवें गणधर सुधर्मा स्वामी पचास वर्ष संसारावस्था
में रहे और उतने ही वर्ष संयम पर्याय में । प्रश्न- (४) २७ वर्ष का संयम किसने पाला ? आगम का प्रमाण चाहिए। उत्तर- अंतकृद्दशांगसूत्र में सुपईट्ठ गाथापति २७ वर्ष का संयम पाल कर सिद्ध
बुद्ध हुए हैं। प्रश्न-- (५) कालिकसूत्र और उत्कालिकसूत्र क्यों माना जाय ? उत्तर- कालिकसूत्रों के रचयिता चार ज्ञान के स्वामी गणधर होते हैं और
उत्कालिकसूत्रों के प्रणेता बहुसूत्री आचार्य आदि होते हैं। विशेष जानकारी नंदीसूत्र में देखिए।
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