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११४ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ मन थानेदार तो पानी-पानी हो गया। सोचने लगा-वास्तव में ये महान संत हैं। नासमझी से हमने इनको रोका और सताया।
पैरों में गिर पड़ा । “स्वामीजी ! अपराध के लिए क्षमा करें। आपको जरा भी क्रोध नहीं आया। हमारे पास ऊपर से आदेश आया हुआ है। इन दिनों पाकिस्तान के बहुत से द्रोही-तत्त्व आया-जाया करते हैं । इसलिए हमें सतर्क रहना पड़ता है।"
__ मुस्कान भरते हुए महाराजश्री ने कहा- "मुझे प्रसन्नता है। आपने अपने कर्तव्य का पालन किया है। देश के प्रति आपने वफादारी बताई है। इसमें बुरा मानने की कोई जरूरत नहीं है ? 'जैनमुनि' परिचय का एक पेंपलेट देकर मुनि आगे बढ़ गये। थानेदार बहुत देर तक नंगे पैर, नंगे सिर एवं निराडम्बरी साधु-जीवन की ओर अभिवादन करता ही रहा, जहाँ तक वे साधक ओझल नहीं हुए। उपदेश का प्रभाव
यह घटना ३०-४-५३ की है। उन दिनों डालमिया नगर में पर्याप्त धर्म-प्रभावना कर प्रवर्तकश्री आदि मुनिमण्डल के चारु-चरण-बरकट्ठा गाँव की ओर आगे बढ़ रहे थे। मार्ग के बीच सड़क के किनारे ही उबलते हुए जल से भरा एक कुण्ड देखा, उसका नाम सूर्य कुण्ड कहा जाता है।
इसी कुण्ड पर संयोगवश गहलोत राजपूतों की एक जाति-सुधार सभा हो रही थी। इस विशाल सभा में उन्हीं जाति वाले सज्जनों के तद्विषयक जोशीले भाषण हो रहे थे । चलते-चलते मुनिसंघ भी वहाँ आ पहुँचा । जैन मुनियों के शुभागमन की सूचना मिलते ही वे लोग सेवा में आये और प्रवचन के लिए आग्रह कर बैठे। सभासदों के आग्रह से प्रवर्तकश्री ने भी सारगर्भित प्रवचन फरमाया एवं उनकी इस प्रवृत्ति की सराहना की।
प्रवर्तकश्री ने उपदेश में जोर देते हुए फरमाया कि “समाज-सुधार तभी सम्भव है जब आप सभी मद्य-मांसादि का बिल्कुल त्याग करें। तभी आपके समाज की उन्नति हो सकती है, तभी जीवन का स्तर ऊँचा उठ सकता है और एकत्रित होना भी तभी सार्थक है।"
यह उपदेश का ही प्रभाव था कि उन तामसी प्रवृत्ति वाले पुरुषों की भी बुद्धि पलट गई और वे एक स्वर से बोल उठे-"हमें प्रण दीजिए, हम आज से मद्य और मांस न खायेंगे और न पीयेंगे।"
तत्काल ही उपस्थित सज्जनों ने मद्य-मांसादि कुटेवों का त्याग कर दिया एवं सम्मिलित रूप से एक लिखित प्रतिज्ञा-पत्र दिया । वह इस प्रकार है
आज ३०-४-५३ को हमारी गहलोत राजपूतों की जाति-सुधार की विशाल सभा हुई। जिसमें जैन मुनि श्री प्रतापमलजी महाराज, श्री हीरालालजी महाराज आदि जैन मुनि उपस्थित हुए और जैन मुनि श्री हीरालालजी महाराज का मद्य-मांस
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