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आशीर्वचन
मालवरत्न ज्योतिर्विद स्थविर पद-विभूषित
गुरुदेव श्रीकस्तूरचन्दजी भगवान महावीर द्वारा प्ररूपित पावन बिना नहीं रहते हैं। कारण यह कि त्रिवेणी स्वरूप (अहिंसा-अनेकान्त-अपरि- तात्त्विक विषय को भी आप सरल-सुगम ग्रह) सिद्धान्तों का पूरी निष्ठा के साथ भाव-भाषा-शैली में फरमाने में दक्ष हैं। प्रचार-प्रसार करते हुए आगम विशारद् फलतः श्रोताओं का मन-मयूर बाग-बाग प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज साहब हो जाता है। अपने समुज्ज्वल संयम साधना के पचपनवें आप स्व० श्री लक्ष्मीचन्दजी महाराज वर्ष में मंगल-प्रवेश कर रहे हैं।
के शिष्य रत्न हैं। सदैव मेरे प्रति पूर्ण___आपकी आध्यात्मिक साधना स्व-पर रूपेण श्रद्धाशील एवं भक्तिशील रहे हैं। के लिए कल्याणस्वरूप सिद्ध हुई। भूले- मैं पूर्ण रूप से आपके लिए यह मंगल भटके हजारों-लाखों नर-नारियों के लिए कामना करता हूँ कि इसी प्रकार आप मार्गदर्शन बनी एवं उन्हें जीवनोत्थान की जन-जीवन को जिनवाणी से प्रतिबोधित सबल प्रेरणा भी मिली।
करते रहें। महामहिम धर्म-प्रभावना की सरलता, ऋजुता, सहिष्णुता, दयालुता, महनीय सुगन्ध से संसार को महकाते रहें। उदारता, स्पष्टवादिता एवं मिलनसारिता साधना की चिर-ज्योति से जगतीतल को आदि गुण-सौरभ से आपका साधनामय जगमगाते हुए स्वयं प्रकाशमान हों। जीवन समाज रूपी वाटिका को तरोताजा इसमें आप सक्षम हों, सफल एवं सबल बनें बना रहा है। इसी कारण आबाल-वृद्ध अपनी साधना में। पर्यन्त आपका व्यक्तित्व गूंज रहा है।
श्रावण शुक्ला १ आपके प्रभावशाली व्याख्यानों का
जैन स्थानक पान कर जैन-जैनेतर सभी तल्लीन हुए
नीम चौक, रतलाम (म० प्र०)
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