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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
भावांजलि
| मालवकेशरी श्री सोभाग्यमल जी महाराज हर्ष का विषय है कि मुनिद्वय अभि नन्दन ग्रन्थ के द्वारा शास्त्र विशारद् प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज द्वारा जैन शासन की, की गई सेवाओं के लिये उनका अभिनन्दन किया जा रहा है ।
प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज का जीवन सिद्धान्तों से अनुप्राणित जीवन है । जैनागमों के प्रति आपकी विशेष रुचि है । आपके प्रवचनों में तत्त्वज्ञान का सुन्दर विवेचन रहता है। आपके प्रवचनों की कई पुस्तकें 'हीरक-प्रवचन' के नाम से प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनसे आपके शास्त्रीय और तात्त्विक ज्ञान का परिचय
हीरा चमकता रहे
मेवाड़ संघ शिरोमणि प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज
प्रतिक्रमण के बाद श्रावक एक “आवश्यक पद" गाया करते हैं । उसका एक पद यह है
हीरा की परख भाई, कूंजड़ो तो जाणे कांई । जौहरी से परख कराओ रे, भाई ! भव आवश्यक अति सुखदाई रे ॥
आज जब मैं पण्डित श्री हीरालाल जी महाराज के विषय में कुछ कहना चाह रहा हूँ तो बरबस यह पद मेरे मन में उभर-उभर कर आ रहा है ।
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'हीरा' जो एक रत्न होता है, सच्चा जौहरी ही उसकी कीमत आँक सकता है । कूंजड़ा तो उसे मात्र कंकर समझ कर फैंक देगा ।
मिलता है । आपने भारत के कई प्रान्तों में विचरण कर जैनधर्म के सिद्धान्तों का प्रचार किया है । बंगाल, बिहार, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, आन्ध्र, मद्रास, कर्नाटक आदि क्षेत्रों में विचरण करके आपने जैनधर्म की अच्छी प्रभावना की है। आपका चारित्रपक्ष भी पर्याप्त समुज्ज्वल रहा है । मैं कामना करता हूँ कि प्रवर्तक श्री हीरालाल जी महाराज चिरकाल तक ज्ञान दर्शन और चारित्र की आराधना करते हुए जैनशासन की शोभा में अभिवृद्धि करते
रहें ।
हमारा 'हीरा' जिसकी मैं चर्चा करने जा रहा हूँ उसे परखने को भी जौहरी जैसी ही पैनी दृष्टि की आवश्यकता है ।
श्री हीरालालजी महाराज को कोई या व्यक्ति प्रथम बार देखे तो वह केवल उतना ही प्रभावित होगा, जितना कि सामान्यतया साधुमात्र को देखकर कोई भी प्रभावित होता है किन्तु ज्यों ही वह व्यक्ति उस शांत व्यक्तित्व के घने सम्पर्क में आएगा, सचमुच उसे कुछ निराले अनुभव होने लगेंगे ।
वह देखेगा कि सामान्यतया साधुता के इस साधारण वातावरण में एक ऐसी असाधारण विशेषता विद्यमान है जो प्रायः अन्यत्र मिल पाना सम्भव नहीं ।
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