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संस्मरणों के प्रकाश में ११७ प्रश्न - ( ६ ) कौन से तीर्थंकर का और कौन से गणधर का आयुष्य समान था ? चरम तीर्थंकर महावीर और अचल भ्राता गणधर का आयुष्य बराबर ७२ वर्ष का था । समवायांगसूत्र में इसका उल्लेख मिलता है ।
उत्तर
प्रश्न – ( ७ ) भगवान महावीरस्वामी को आहार बहराकर कितने जीवों ने संसार परित किया ? नामोल्लेख करें ।
उत्तर
प्रश्न -
उत्तर
भगवतीसूत्र, शतक १५वें में जब भगवान महावीर का द्वितीय चातुर्मास बीत रहा था । उस चौमासे में भगवान महावीर ने महीने - महीने के चार मासखमण किये । पहला पारणा विजय श्रेष्ठी के द्वारा, दूसरा पारणा सुदर्शन श्रेष्ठी के हाथों से, तीसरा पारणा आनन्द गाथापति के हाथों से और चौथा मासखमण का पारणा 'गोबहुल' विप्र के हाथों से सम्पन्न हुआ । उक्त चारों पुण्यात्माओं ने संसार परित किया। जिनका आगम में उल्लेख है ।
(८) वर्तमानकाल के चौबीस तीर्थंकर कौनसी तपस्या करके दीक्षित बने ? उल्लेख करें ।
पाँचवें तीर्थंकर सुमतिनाथ भगवान ने एकासन करके, बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य भगवान ने उपवास करके, उन्नीसवें मल्लिनाथ और तेईसवें पार्श्वनाथ प्रभु अट्टम तप करके और शेष तीर्थंकरों ने बेले की तपाराधना के अन्तर्गत दीक्षाव्रत स्वीकार किये हैं ।
प्रश्न - ( 8 ) वेदनीय कर्म की स्थिति अन्तर्मुहूर्त की क्यों है ?
उत्तर
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सकषायी आत्माओं को सातावेदनीय का बंधन जघन्य १२ मुहूर्त का होता है और अकषायी आत्माओं को सातावेदनीय का जघन्य बंधन दो समय का होता है । इस कारण से वेदनीय कर्म की स्थिति अन्तर्मुहूर्त की कही है।
आश्चर्यकारी, किन्तु सत्य
विक्रम संवत् २००६ का चातुर्मास आपश्री का कानपुर था । स्थानीय संघ में अत्यधिक उत्साह की लहर परिव्याप्त थी । आनन्द के क्षणों में तीन मास बीते और चौथे मास ने प्रवेश किया ।
कार्तिक शुक्ला हवीं की रात्रि के समय महाराजश्री एक शयनकक्ष में निद्राधीन थे । उस समय एक शुभ स्वप्न दृष्टिगोचर हुआ ।
अनुपम कांति-द्युति-युक्त तीसरे देवलोक का एक देव महाराजश्री के चरणकमलों में खड़ा है ।
तब महाराजश्री ने पूछा - " आपका इतना तेज ! आप कौन हैं ? अपना परिचय दें।"
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