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११८ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
"भंते ! मैं तीसरे देवलोक का रहने वाला देव हूँ। केवल दर्शनों के लिए अवतरित हुआ हूँ।"
"बहुत प्रसन्नता की बात है। अच्छा बताओ कि मेरे कितने भव बाकी हैं ?" महाराजश्री ने पूछा।
"भंते ! सम्पूर्ण भवों का ब्योरा तो सर्वज्ञ ही बता सकते हैं। किन्तु मैं आत्मविश्वास के साथ कहता हूँ कि आपके बहुत थोड़े भव बाकी हैं।"
मुनि-चरणों में नतमस्तक होकर देव अदृश्य हो गया। फिर महाराजश्री की निद्रा भंग हुई।
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