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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
विद्वान्, सिद्ध, उत्तम चारित्रवान्, बहु-मित्र युक्त, यशान्वित कराता है ।" "तुला लग्न में कर्क का गुरु पराक्रमी, उच्च पद प्राप्ति, आस्तिक, धर्म प्रसारक, पंडित मंडित बनाता है ।" "यदा मुस्तरी कर्कटे वा कमाने, यदा चश्म खोरा जमी, वासमाने" तदा "ज्योतिषि क्या पढ़ेगा लिखेगा ? हुआ बालका बादशाही करेगा ।" अर्थात् वृहस्पति कर्क या धन राशि का हो, शुक्र घन या सुख भाव में हो तो जातक बादशाह या संतात्मा होगा । ( प्रबल राजयोग होने पर जातक राजा या संत बनता है ) ।
आजानुबाहु - पूज्यश्री के बाहु घुटनों तक पहुँचते हैं। अतः आप "आजानुबाहु " हैं। महात्मा गांधी, भगवान महावीर, नेहरू, पूज्य स्व० आचार्य जयमलजी महाराज आजानुबाहु थे । पृथ्वीराज चौहान भी आजानुबाहु थे । “पृथ्वीराज रासो" के पद्मावती समय खण्ड में "आजानुबाहु भू-लोक इन्दु” का उल्लेख है । आजानुबाहु मानव बहुत प्रसिद्ध राजा या संतात्मा होता है । एतदर्थं पूज्यश्री के श्रमणश्रेष्ठ होने का योग बना है ।
शनि में वृहस्पति का अन्तर चल रहा है । संवत् २०३३ विशेष ख्याति बढ़ाने वाला है । २०३३ से मृत्यु पर्यन्त भाग्योदय, यश-कीर्ति में अभिवृद्धि होती रहेगी । स्वास्थ्य बाधक वर्ष ७६-७९ है । विशेष शुभ कर्मोदय से ८० या ८१ वर्ष तक आध्यात्मिक जीवनयापन करते हुए, देह त्याग करेंगे । समाधिमरण या संथारा ग्रहण करते हुए मरण होगा । धर्मशास्त्रों का श्रवण करते हुए, स्वर्ग लोक पधारेंगे । लक्षाधिक संख्या में अन्तिम समय में श्रावक-श्राविकाएँ विद्यमान रहेंगी ।
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संतवर ! प्रसन्नवदन, आनन्द सदन, लोकोपकारी, दिवाकर, सत्यनिष्ठ, संयमनिष्ठ, धर्म-कर्मनिष्ठ हैं, निश्छली, लोहपुरुष, जैनागमविज्ञ, कुलदीपक, धर्मदीपक हैं । तुलसीदास जी की यह उक्ति आपके जीवन में सार्थक रही है ।
'तुलसी' जब जग में भए, जग हँसा और तुम रोए । ऐसी करणी कर चलो, तुम हँसो और जग रोए ॥ चिरायु भव ! दीर्घायु भव !!
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"जातक तत्त्वम्" "पृ० ४४५
२ " प्रतापोदय" ज्योतिष विज्ञान, चतुर्थ अध्याय, पृ० २४ "खेट कौतुकम् ” राजयोगाध्याय, श्लोक १४, पृ० ३३
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