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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
दान देने से पुण्य की प्राप्ति होती है । पुण्य किये बिना ही जो पुण्य का फल चाहते हैं वे बीज बोये बिना ही फसल चाहते हैं । ऐसा कभी हुआ नहीं, हो भी नहीं सकता । अतएव भाइयो ! अगर आप श्रीपालजी की भांति पुण्य का फल चाहते हैं तो उनके समान सत्कृत्य करो, धर्म-क्रिया करो | आपको भी उसी प्रकार का फल प्राप्त होगा ।
जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि
जिसकी जैसी दृष्टि होती है, उसे वैसा ही अर्थ प्रतिभासित होने लगता है । इसी कारण शास्त्र में कहा है कि सम्यकदृष्टि के लिए मिथ्याश्रुत भी सम्यक् श्रुत के रूप में परिणत हो जाता है और इसके विपरीत मिथ्यादृष्टि सम्यक् श्रुत को भी मिथ्यारूप में परिणत कर लेता है । यह बात समझने वाले के सही या गलत दृष्टिबिन्दु पर निर्भर है । अतएव जब कभी किसी शास्त्र को पढ़ें तो इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि - किस नय की अपेक्षा कौन सी बात कही गई है। नय-विपक्ष को समझने में भूल करने वाला पाठक भ्रम में पड़ जाता है और कभी-कभी तत्त्व स्वरूप को विपरीत समझ
लेता है ।
कथनी का नहीं, करनी का मूल्य है
केवल मात्र साधु का वेष धारण करने से ही वह सच्चा सुख प्राप्त नहीं होगा । वेष के साथ-साथ जीवन में साधुत्व के गुणों का आना भी परमावश्यक है । उन गुणों से ही साधु-वेष की कीमत मानी गई है। यदि किसी ने साधु का वेष तो धारण कर लिया परन्तु जीवन में साधुता नहीं आई तो ऐसा रूप बना लेना इसी प्रकार का सिद्ध होगा जैसा कि कोई एक गधे को हाथी की कीमती झूल यह समझकर ओढ़ा दे कि यह गधा भी हाथी जैसा दिखने लगेगा । परन्तु पहली बात यह है कि यह झूल के भार को सहन भी नहीं कर सकेगा और कदाचित कर भी ले तो उस झूल की कदर नहीं कर सकेगा और यहाँ तक कि राख में लोटकर उसे खराब कर देगा । हाथी की झूल तो कोई हाथी के गुणों को धारण करने वाला ही धारण कर सकेगा । अन्यथा दूसरे के लिए आनन्द के बदले दुखदाई ही सिद्ध होगी। हाँ, सुखानुभव तो तभी हो सकेगा जबकि संयम में रमण करते हुए उसे अच्छी तरह निभाया जायगा ।
अमूल्य अवसर है
भाई ! जो सुअवसर तुमको जीवन सुधारने के लिए मिल गया है यदि उसमें प्रभु-भक्ति और सदाचार का पालन नहीं किया तो प्राप्त सुअवसर के लाभ से वंचित रहोगे और पश्चात्ताप ही अवशिष्ट रह जायगा । जैसे उदाहरण के रूप में कहा जाता है कि जब खेत में फसल पकी हुई थी परन्तु कोई महमान तब तक नहीं आया और जब फसल बाजार में बिक चुकी या नष्ट हो गई तब महमान किसी जमींदार के यहाँ आए । परन्तु ऐसी स्थिति में उन महमानों को वहाँ से क्या प्राप्त हो सकता है ? अर्थात् उन्हें वहाँ से भूखे ही रवाना होना पड़ेगा । हाँ, खेत में उन्हें मिट्टी के ढेले तो अवश्यमेव मिल सकते हैं ।
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