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वचन और विचार १०७
यह चुनौती सामने है आज यदि हम वर्तमान सरकार के कार्य-कलापों की ओर दीर्घ दृष्टि डालें तो हमें जानकारी होगी कि वह हिंसात्मक प्रवृत्ति करके देश को पाप कर्म के बोझ से भारी बना रही है । जिस कांग्रेस की बुनियाद केवल अहिंसा और सत्य के ऊपर डाली गई थी, वही कांग्रेस सरकार आज हिंसा के नए-नए तरीके अपना रही है जबकि महात्मा गांधी ने स्वयं सत्य एवं अहिंसा का जीवन में पूर्ण रूप से पालन करते हुए अपने अनुयायियों को भी उसी राह पर चलने का आदेश दिया था। परन्तु वे ही अनुयायी स्वतंत्र भारत में उच्च पदाधिकारी बन कर अपने राष्ट्रपिता के बताए हुए मंत्र को प्राय: भूल गये हैं। आज की सरकार तो हिंसात्मक व्यापार ही करने लग गई है । जिस पवित्र भारतभूमि के निवासी किसी दिन आध्यात्मिकता का पाठ विदेशी लोगों को पढ़ाते थे, वही आज विदेशों के साथ पशुओं की जबान, चमड़ा और मांस का व्यापार करने पर उतारू हो गये हैं । आज लाखों बन्दर पकड़वाकर अमेरिका आदि विदेशों में भेजे जा रहे हैं, जहाँ वे मूक पशु दयनीय दशा में तरह-तरह के प्रयोगों में काम आने के बाद मरण को प्राप्त हो जाते हैं । तो आज पूर्व समय की अपेक्षा विशेष रूप से हिंसा बढ़ चुकी है। परन्तु याद रखना, कहीं यही हिंसात्मक प्रवृत्ति भारत के भाग्य को समुज्ज्वल बनाने के वजाय रसातल की ओर न पहुँचा दें।
___ गुणग्राही बनें मैं आपसे यही अभिलाषा करता हूँ कि जहाँ कहीं और जिस किसी वेष में भी गुणवान पुरुष मिल जायं तो मैं उनके दर्शन करके प्रेम से विह्वल हो उहूं। मैं उनकी यथोचित सेवा कर सकूँ। उनकी सेवा करते हुए मेरे मन में अत्यधिक सुख का अनुभव होने लगे । कहिए! प्रार्थना तो भगवान से भक्त इस प्रकार की करता है परन्तु उसी भाव को जब अमली रूप देने का वक्त आता है तो वह अपनी भावना को भी भूल जाता है और साकार रूप देने में उसके पैर लड़खड़ाने लगते हैं। ऐसी परिस्थिति में उसके द्वारा की गई दैनिक प्रार्थना का क्या महत्त्व रहा? कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी भक्त के हृदय में राग-भाव के कारण अपने माने हुए गुणी पुरुष के प्रति तो प्रेम उत्पन्न हो जाता है और दूसरे सम्प्रदाय के उससे भी अधिक गुणी महापुरुष के प्रति द्वेष-भाव जाग्रत हो जाता है। यद्यपि उस भावना के अनुसार तो सभी सम्प्रदायों के गुणी पुरुषों के प्रति समान भाव, समान प्रेम और समादर की वृत्ति ही रहनी चाहिए।
यह मानसिक दोष देखो ! जवासा एक प्रकार का घास होता है । वह काले-काले पानी भरे बादलों की गड़गड़ाहट सुनकर सहमने लगता है । जब वर्षा होती है तो वह सूख जाता है। परन्तु इसके विपरीत जब ग्रीष्म ऋतु की कड़कड़ाती धूप पड़ती है तो वह हरा-भरा हो जाता है। उस जवासा के समान भी कई मनुष्य हैं जो गुणी पुरुषों को देखकर प्रसन्न होने के वजाय जलने लगते हैं। यह ईर्ष्याग्नि मानव को जिन्दा रहते हुए भी जलाकर भस्म
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