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११० मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ आत्मिक शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाली विजय में ऐसी बुराई नहीं। वह शाश्वत और सच्ची विजय है । अतएव ज्ञानीजन कहते हैं-भाई ! तू युद्ध करना चाहता है तो आत्मा के साथ ही कर, बाहरी युद्ध से तेरा क्या भला होने वाला है ? अरे, अपनी आत्मा से ही आत्मा को जीतकर सुखी बन । यही सुख-प्राप्ति का राजमार्ग है, आत्म-जय ही सच्चा पथ है। सम्यक्त्व का महत्त्व है
सम्यक्दर्शन अर्थात् सच्ची श्रद्धा के बिना कितना भी ज्ञान और कितनी भी उग्र किया क्यों न हो, सब मिथ्या है। संसार परिभ्रमण का कारण है। सम्यकदर्शन ही ज्ञान और चारित्र को प्रशस्त एवं मोक्षोपयोगी बनाता है। इस प्रकार सम्यकदर्शन के बिना काम नहीं चल सकता और ज्ञान की अत्यन्त आवश्यकता है। जैसे सूर्य के प्रकाश से अन्धकार नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार सम्यक्ज्ञान प्राप्त होने पर अज्ञान भाग जाता है । ज्ञान के द्वारा ही जीव को हिताहित का, कृत्य-अकृत्य का और भक्ष्यअभक्ष्य का विवेक होता है। मिथ्या धारणाओं का अन्त आवश्यक है
पर्युषण पर्व मानव को संसार के समस्त भयों से मुक्त करने के लिए ही आता है। उसकी यही प्रधान प्रेरणा है कि शुद्ध आत्मस्वरूप की उपलब्धि करो जिससे कोई भय शेष न रह जाए। जब तक आप पर-पदार्थों को अपना समझते रहेंगे और उन्हीं को शरणभूत एवं सुखदाता मानते रहेंगे, तब तक भयों का अन्त नहीं आ सकता। भय का अन्त करने के लिए मिथ्या धारणाओं का अन्त करना आवश्यक है। मिथ्या धारणा का अन्त महापुरुषों के जीवन-चरित्रों को सुनने-समझने और उनका गहरा मनन करने से सहज ही आ सकता है। इसी कारण पर्युषण पर्व के अवसर पर उन्हें सुनाने की प्रणाली प्रचलित हुई है। प्रतिज्ञा-भंग, कायरता का प्रतीक
__ कई भाई-बहिन भावावेश में आकर साधु-साध्वियों के समक्ष प्रतिज्ञा तो ले लेते हैं परन्तु जब पालन करने में थोड़ी-सी कठिनाई उपस्थित होती है या किसी प्रकार का प्रलोभन सामने होता है, तो अपने मन पर काबू नहीं कर पाते और प्रतिज्ञा भंग कर डालते हैं । परन्तु आपको जानना और याद रखना चाहिए कि प्रतिज्ञा लेने के साथ आप पर बड़ी जिम्मेदारी आ जाती है । अतएव प्रतिज्ञा ग्रहण करने से पूर्व ही अपनी शक्ति को पूर्णरूप से तोल लेना चाहिए और यह निश्चय कर लेना चाहिए कि प्रतिज्ञा का भली-भांति पालन मुझसे हो सकेगा, तत्पश्चात् ही उसी प्रकार अंगीकार करना चाहिए। पूर्ण विश्वास न हो तो अभ्यास के पश्चात् उसे प्रतिज्ञारूप में स्वीकार करना चाहिए।
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