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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
कर देती है । ऐसे ईर्ष्यालु व्यक्ति अपनो आत्मा को उन्नति के वजाय अवनति की ओर ले जाते हैं ।
समय का मूल्य समझें
यदि आप वकीलों के पास या डाक्टरों के पास जायेंगे और उनसे किसी विषय पर परामर्श लेना चाहेंगे तो आपको बात करने की भी फीस देनी पड़ेगी। बिना फीस लिए वे आपसे बात नहीं करेंगे । तो दोनों ही बात करने की फीस लेते । यदि आपके पास फीस देने को पैसा नहीं है तो आपसे बात करने की उनको फुरसत भी नहीं है । तो जिनके पास कार्य की अधिकता है, उनके पास समय की भी कीमत है और जो बेकार हैं उनके लिए समय की कोई कीमत नहीं है । ऐसे बेकार आदमी स्वयं भी समय की कद्र (कीमत ) नहीं करते और जो कार्य में संलग्न हैं, उन्हें भी बाधा पहुँचाते हैं ।
भावों की महत्ता है
आपको मालूम है कि माता का हृदय भी अपनी संतान के प्रति कितनी वात्सयता लिए हुए होता है । वह अंतरंग हृदय से बच्चे को प्यार करती है । माँ की ममता जगत्प्रसिद्ध है । वह अपनी संतान के सुख के लिए खाना, पीना, सोना, बैठना आदि सब कुछ छोड़ देती है और मौका आने पर अपने सर्वस्व का त्याग करने में भी नहीं सकुचाती । परन्तु इतना ममत्व होने पर भी जब कभी बच्चा बीमार हो जाता है और डाक्टर या वैद्य उसको निरोग करने के लिए कड़वी दवा देते हैं जिसे बच्चा लेना पसंद नहीं करता । वह दवा नहीं लेने के लिए अपने हाथ-पैर उछालता है, मारता है और दवा भी ढुलका देता है परन्तु उस समय माता उसके हाथ-पैर पकड़ लेती है और जबर्दस्ती उसके मुँह में दवा उड़ेल देती है । कभी-कभी ऐसा भी होता है कि बच्चा दवा लेने को मुंह नहीं खोलता है तो वह उसके मुंह में बेलन या चम्मच डालकर भी दवा उड़ेल देती है । भाई ! माता का हृदय इतना कोमल होने पर भी उस समय इतना कठोर बन जाता है कि कड़वी दवा का सेवन कराकर ही वह चैन लेती है । तो इतना सब कुछ वह किसलिए करती है ?
साधु नहीं, वे स्वादु हैं
आज के युग में आपको सच्चे गुरुओं के दर्शन मुश्किल से प्राप्त होंगे क्योंकि - 'आज के साधु, साधु नहीं रहकर स्वादु' बन गये हैं । आज कई लोगों ने तो अन्नाभाव के कारण या सरकारी कानून की गिरफ्त से अपने आपको बचाने के लिए साधुवेश धारण कर लिया है । तो इस प्रकार के वैराग्यहीन वेषधारी साधु अपने आपको तो धोखा देते ही हैं परन्तु अपने काले कारनामों के द्वारा समाज की निगाहों में भी कलंकित और दोषी साबित हो रहे हैं । परन्तु वास्तव में देखा जाय तो वे जितने अपराधी हैं उससे कहीं अधिक अपराधी शिष्य- लोलुपी गुरु हैं जो बिना परीक्षा किए ही ऐसे लम्पटी, विषयी और दुराचारियों को शिष्यत्व पद देकर अपना अहोभाग्य समझते हैं किन्तु जब
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