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नक्षत्रों की भाषा १०१ शास्त्रार्थ करते थे। कथावाचक थे। गायन संगीत में विशेष रुचि थी। जैन संतों का सम्पर्क था।" अतः इस लोक में श्रमण बनने का योग बना।
ग्रहतुलना-आपके सुतस्थ शनि कुम्भ राशि का है। गौतम बुद्ध के मकर का शनि स्वगृही पंचमस्थ था। कुम्भ का शनि विभिन्न स्थानों में कुम्भ राशि पर “काका" हाथरसी, डा. महेन्द्र भानावत, पूज्य प्रवर्तक अम्बालालजी महाराज साहब व “पवि" के विद्यमान हैं।
दीक्षा योग-पिता-पुत्र की सह दीक्षा होना, “मणि-कांचन योग" बना है। १५ वर्ष की अल्पायु में माघ सुदी ३ संवत् १९७६ में शनिवार को आपकी दीक्षा हुई । पूज्य नन्दलालजी महाराज से दीक्षा ग्रहण की। पूज्यश्री ने पूर्व ही प्रव्रज्या योग की घोषणा करदी थी। स्वयं दीक्षागुरु ज्योतिर्विज्ञ, खगोलज्ञ थे। भाग्येश शुभ ग्रह है। वह भाग्य भवन को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। राज्य भाव में वृहस्पति उच्च का है। वह चन्द्र सौम्य ग्रह द्वारा पूर्ण दृष्ट है। अतः प्रव्रज्या योग बना है । मंगल षष्ठस्थ है। इसके प्रभाव से अविवाह योग व अपरिग्रही योग बना है। वृहस्पति बलाढ्य होने से आध्यात्मिक, नैतिक एवं दार्शनिक योग बना है।
शास्त्रविशारद योग-शनि बलाढ्य है। यह मेधावी, प्रज्ञाचक्षु, स्मरण शक्ति तेज, कुशाग्रबुद्धि, कंठस्थ करने की क्षमता व दक्षता को बढ़ाता है। यही लेखक, कवि, सम्पादक व शास्त्रनिष्णात बनाता है। "खूब रत्नावली" "हीरक हार" आदि अनेकानेक पुस्तकों का सम्पादन किया है। "शनि कुंभस्थ होने से पढ़ने में होशियार, प्रभावशाली विख्यात् होता है।" (प्रतापोदय ज्योतिष विज्ञान)।
सूर्य व केतु-पराक्रम में सूर्य स्थित है। "जिसके पराक्रम में राहु या केतु स्थित हो उसकी भुजा में एक हाथी जितना बल होता है।"२ 'पराक्रम में पं. उदय जैन के राहु है । स्वर्गीय दिवाकर जैनाचार्य चौथमलजी महाराज साहब के सिंह राशि का केतु पराक्रम में था। सरदार पटेल के विभिन्न राशि पर पराक्रम में था । “पराक्रम में राहु या केतु जाने से मनुष्य शुचि से रहने वाला राज, बलयुक्त, यशस्वी, कीर्तिवान होता है ।"3 "तृतीये यदा हर्म्यणि जन्मकाले प्रतापाधिकं विक्रमं च तनोति"४ अर्थात् सूर्य पराक्रम में जाने से महापराक्रमी तेजस्वी बनाता है “पराक्रम में सूर्य जाने से प्रत्युत्पन्नमति होता है।"
संगीतज्ञ योग-चतुर्थभाव में शुक्र शास्त्रज्ञ, संगीतज्ञ तथा व्याख्याता बनाता है। चन्द्र शुक्र साथ होने से कवि योग बनाता है । पुण्यशील, पूतात्मा बनाता है ।
कर्क पर वृहस्पति-(विशेष फल) “दशम भावगत वृहस्पति स्वधर्मरत,
१ "प्रतापोदय" संहिता २ "चमत्कार चिन्तामणि" ३ राहु फलम् खेट कौतुकम्, पृ० २७ ४ ज्योतिष कल्पतरु, पृ० १३२
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