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६२ मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
प्रविष्ट हुए हैं। वस्तुतः काफी जनसमूह आपके व्यक्तित्व से अति ही लाभान्वित हुए हैं।
सभी वर्षावासों का विस्तृत वर्णन यहाँ नहीं किया जा रहा है। पाठकवृन्द के केवल चन्द चातुर्मासों का ही दिग्दर्शन कराना उचित रहेगा ।
सं० १६६५ का जम्मू चातुर्मास
जम्मू यह काश्मीर का मुख्य जिला है । पंजाब की सीमा पर होने से व्यापार का केन्द्र है । यहाँ के जैन परिवार अन्य प्रान्तों की अपेक्षा सुखी एवं समृद्ध हैं । मुनियों के शुभागमन पर स्थानीय जैन समाज में उत्साह की लहर - सी दौड़ गई। मानो इच्छित वस्तु की प्राप्ति हो गई। इतना ही नहीं आपके पांडित्यपूर्ण प्रवचनों के प्रभाव से आबाल-वृद्ध युवक आदि सभी धर्माराधना में लोभी वणिक् की भाँति लग गए । सैकड़ों जैनेतर मानव आपकी प्रभावशाली वाणी के प्रभाव से शाकाहारी बने और सैकड़ों निर्व्यसनी; एवं सैकड़ों मूक प्राणियों को अभय दान जीवन मिला ।
समय-समय पर आपके सान्निध्य में कई बार सार्वजनिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये गये । जिसमें नगर के साहित्यकार संगीतकार तथा संस्कृति प्रेमी सज्जनों ने बड़ी संख्या में आकर कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। उपस्थित बुद्धिजीवी वर्ग को कई बार आपने धर्म के प्रति श्रद्धा के लिए सम्बोधित भी किया। आपके उपदेशों का इतना प्रभाव पड़ा कि तत्काल 'जीव दया मण्डल' नामक एक संस्था की स्थापना हुई। कई श्रीमंत उस संस्था के सदस्य बने । उसी जीव दया फंड से 'महावीर जैन औषधालय' खोला गया । आज दिन तक पीड़ित नर-नारियों की सेवा में निष्ठापूर्वक वह औषधालय संलग्न है । इस अल्पकाल में जम्मू एवं कश्मीर राज्य के अनेकों प्रमुख अधिकारी एवं कर्मचारी वर्ग आपके सम्पर्क में आये और जैन साध्वाचार से परिचित हुए। इस ऐतिहासिक वर्षावास को वहाँ के बुजुर्ग वर्ग आज भी याद करते हैं । सं० २००८ का दिल्ली वर्षावास
चातुर्मास प्रारम्भ से पूर्व ही व्याख्यानों की धूम - सी मच गई। चरित्रनायक के हृदयस्पर्शी उपदेशों के प्रभाव से चारों ओर से जन-प्रवाह उमड़-घुमड़ कर आने लगा । कुछ दिनों बाद दिगम्बराचार्य श्री सूर्य - सागरजी महाराज से स्नेह मिलन हुआ । तत्पश्चात् कई बार संयुक्त व्याख्यान हुए । दिल्ली - संघ के इतिहास में भी शायद यह प्रथम घटना ही थी कि दिगम्बराचार्य एवं स्थानकवासी मुनि इस प्रकार सस्नेह मिल-जुल कर रचनात्मक कार्य में रत हों, यह समाज के लिए गौरव की बात थी । इस प्रकार पारस्परिक मैत्री भावना का सूत्रपात हुआ । एक-दूसरे के सन्निकट आये एवं नाना प्रकार की मिथ्या भ्रान्तियाँ भी दूर हुईं ।
तत्पश्चात् दोनों संघों के भगीरथ सत्प्रयत्नों से मुनिमण्डल के 'श्री हीरालाल हायर सेकेण्डरी स्कूल' में हजारों जन मेदिनी के समक्ष सम्मिलित व्याख्यान हुए । फलतः
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