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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
मालव धरती गहन गंभीर ।
डग-डग रोटी पग-पग नीर । भारतीय इतिहास के शौर्यपूर्ण अनेक स्वर्णिम पृष्ठ मालवीय नर-रत्नों की गौरव-गाथाओं से भरे हुए हैं। भारतीय साहित्य तो इसके अमर कवियों, लेखकों और दार्शनिकों से धन्य और उपकृत है। यहाँ एक ओर बड़े-बड़े सम्राट विक्रम-भोज जैसे हुए हैं तो दूसरी ओर ज्ञान-गंगा को प्रवाहित करने वाले कालिदास और भारवि सदृश अमर कवि भी। एक ओर अनेक धर्मनिष्ठ श्रद्धालु-श्रमणोपासक हुए हैं तो दूसरी ओर अपार ऐश्वर्य को ठुकराकर साधना-पथ के पथिक अनेक मुनि-मनस्वी एवं महासती वृन्द भी।
___ सदियों से मालव की चप्पा-चप्पा धरा श्रमणसंस्कृति एवं वैदिक संस्कृति के प्रिय संदेशों से प्लावित-प्रभावित रही है। दोनों संस्कृतियाँ मूल में पूर्ण स्वतंत्र अस्तित्व को संजोये पारस्परिक एक-दूसरे की पूरक रही है। अहिंसा-सत्य-अचौर्य-ब्रह्मचर्यअपरिग्रह आदि दोनों संस्कृतियों का अमर उद्घोष रहा है। उक्त पंचशील के संदेश को गांवों-गांवों और घरों-घरों तक पहुँचाने में संत-जीवन का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। फलतः इस पुण्यभूमि के निवासी अन्य प्रांत-वासियों की अपेक्षा सात्त्विक, सरल एवं धर्म-दर्शन-साहित्य-कलाप्रेमी रहे हैं। जन्मस्थान मंदसौर (दशपुर)
पुरातत्त्व-अन्वेषकों के अनुसार दशपुर का अर्वाचीन रूप आज मंदसौर शहर के रूप में विकसित हुआ माना जाता है । दशार्णभद्र नरेश की यह भोगभूमि एवं योगभूमि रही है। इसी पुण्यभूमि पर आत्महितैषी दशार्णभद्र ने काफी वर्षों तक न्याय-नीति पूर्वक शासन किया। तत्पश्चात् हस्तगत अपार राजवैभव एवं सगे-सम्बन्धी, पुरजनपरिजनों से नेह-नाता तोड़कर भगवान महावीर के सुखद सान्निध्य में इसी पावन धरा पर अकिंचन संयति (भिक्षु) बनकर आदर्श-त्यागी जीवन का एक उदाहरण प्रस्तुत किया था।
जिसके समक्ष प्रथम देवाधिपति शकेन्द्र भी नत-मस्तक होकर अभिवादन करता हुआ बोला था--"हे महामुने ! आपके इस आदर्श त्यागरूप वैभव के समक्ष दैविक सम्पदा तुच्छ है । आपका यह स्वाभिमान सदा-सर्वदा अमिट रहेगा।"
हँसता चेहरा, लम्बा सुडोल गौरव वदन, करुणा बरसाती आँखें, दिनकर सा दमकता ललाट, चाँदी-सी चमकती केशावली, धनुषाकार भौंहें, अमृत रसमय अधरपल्लव, कृत्रिम दन्तमुक्तापंक्ति की विद्युत छटा, गौर गुलाबी गाल, मनमोहक मुखड़े पर मंडराने वाली मुस्कान आदि बाह्य वैभव के साथ उदारता, गुण-ग्राहकता, मिलनसारिता, सरलता, सौम्यता आदि आत्मिक-वैभव के संगम से एक महान् व्यक्तित्व का सर्जन हुआ है, जिनको "जैनागम 'तत्त्वविशारद प्रवर्तक पंडितरत्न श्री
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