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अभिनन्दन-पुष्प
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भक्ति के चार शब्द
- श्री इन्दर मुनि जी महाराज (बड़े) मालव रत्न उपाध्याय पदालंकृत श्रद्धेय श्री कस्तूरचन्द जी महाराज इन दिनों स्थानकवासी जैन समाज में वयोवृद्ध संत शिरोमणि पद पर आसीन हैं। विगत दसकों में आपने कई जैनाचार्यों की सेवा करके अनुभव ज्ञान का अमूल्य कोष प्राप्त किया है ।
मुझे कई बार आपकी सेवा करने का लाभ मिला है। मैंने काफी निकटता से आपके उभय जीवन को देखा है। सदैव आप संकीर्ण विचारों से दूर रहे हैं, कौन अपना कौन पराया ? यह भेद नीति आपके पास नहीं है। यही कारण है कि सभी सन्त आपको “गुरु भगवंत" कहकर पुकारते हैं। आप देह से जितने स्थूल हैं, गुणों में भी आप उसी तरह महान् हैं।
जैन समाज आपको अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट कर रही है। यह गौरव की बात है। मैं भी आपका अभिनन्दन करता हूँ।
स्मृति-पटल पर ताजा संस्मरण
__ मनोहर मस्तराम जी महाराज वि० सं० १९८७ का चातुर्मास पूर्ण कर आचार्य श्री मन्नालाल जी महाराज उदयपुर के उपनगरों में धर्म-प्रचार कर रहे थे। मैं श्री आपकी सेवा में वैराग्यावस्था में धार्मिक अभ्यास कर रहा था। इन्हीं दिनों में पं० श्री कस्तूरचन्द जी महाराज बड़ी सादड़ी (मेवाड़) का चातुर्मास पूर्ण करके उदयपुर आचार्य श्री की सेवा में पधारे। मैंने भी उस समय आपके प्रथम बार दर्शन किए। आपका चेहरा विशाल, भव्य ललाट, भव्यनेत्र, भरा हुआ गज गति सुन्दर आकृति को देखकर मैं अत्यन्त प्रभावित हुआ । आपके दर्शन से मेरे वैराग्य में अत्यधिक वृद्धि हुई । आगे चलकर आप श्री ने मेरी जन्म भूमि गोगुन्दा (बड़ागाँव) फरसकर दीक्षा की आज्ञा भी प्राप्त कराई। ये आपका मेरे पर अत्यन्त उपकार है। आपके साथ अनेक चातुर्मास हुए। उसमें मुझे आपने अनेक शास्त्रों का अभ्यास कराया, शास्त्रों की गम्भीर धारणा भी करवाई। आपके धैर्यता, गम्भीरता, साहसिकता आदि अनेक गुणों ने मेरे पर अत्यन्त उपकार किया है । एक किसी कवि ने ठीक ही कहा है
धीरता, गम्भीरता, होय. उसी में होय ।
____टाटी ऊपर तीन खण्ड, सुण्या न देख्या कोय ।। चारों ही संघों में आपका व्यवहार बहुत सुन्दर है। इस समय आपको उपाध्याय पद पर अलंकृत किए हैं । ये बहुत ही सुन्दर और उपयुक्त है। आपके पास अनुभव का भण्डार सुरक्षित है। आपका संयमी जीवन चिरायु हो, ताकि चिरकाल तक समाज ज्ञान, दर्शन, चारित्र से लाभान्वित हो सके, यही हार्दिक शुभकामना है।
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