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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
मालवरत्न पूज्य गुरुदेव श्री कस्तूरचन्दजी महाराज के प्रति
विनम्र भावांजलि
शंकरराव तानपुरे, एम. ए., साहित्यरत्न
रतलाम
पूज्यपाद मालवरत्न ज्योतिर्विद करुणासागर पं० श्री कस्तूरचन्दजी महाराज साहब के 'हीरक महोत्सव' के पावन उपलक्ष्य में प्रकाश्य अभिनन्दन ग्रन्थ के शुभ समाचार से मैं अपने को अत्यन्त उत्फुल्ल और प्रफुल्लित कर रहा हूँ ।
ज्योतिर्विद्
विगत कुछ वर्षों से पूज्य १००८ श्री श्रद्धेय गुरुदेव श्री कस्तूरचन्दजी महाराज साहब के सम्पर्क में आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । मैंने आप में एक ऐसे ज्योतिर्विद् का आलोक पाया जो भ्रम, संशय, अज्ञान और निराशा के तमःपुंज को विदीर्ण कर मन को उल्लास, आनन्द एवं उत्साह से उजाला देते हैं। दीप प्रकोष्ठ को प्रकाश से आच्छादित कर देता है, तारे झिलमिल कर रात्रि को आभा दिखाते हैं, दामिनी की तड़प क्षणिक होती है किन्तु अरविंद जगती को आलोक पूरित कर रात्रि गत आलस्य का विसर्जन करवा देता है ।
इसी प्रकार ज्योतिर्विद् गुरुदेव के सम्पर्क का प्रभाव है - जो मन के असीम क्षेत्र को अहर्निश चिरन्तन रूप से तथा शाश्वत रूप से आलोक की वृष्टि कर अभि सिंचित करते रहते हैं ।
मालवरत्न
शस्य श्यामला मालवभूमि वास्तव में रत्न प्रसविनी है । अनेक उज्ज्वल रत्नों को प्रसवित करने का सौभाग्य इसे प्राप्त हुआ है । कालिदास, भास, भवभूति जैसे कवि; विक्रम, यशोवर्द्धन एवं भोज जैसे राजा । वराहमिहिर जैसे ज्योतिषी, अहिल्याबाई जैसी धार्मिक एवं नीतिज्ञ रानी, चन्द्रशेखर आजाद जैसे अमर शहीद किन्तु मालव रत्नों की इस मणिमाला का एक अत्यन्त मूल्यवान रत्न है - श्रद्धेय श्री कस्तूरचन्दजी महाराज साहब जिनमें तप त्याग, ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं करुणा की इन्द्रधनुषीय आभा के दर्शन होते हैं ।
शास्त्रज्ञ
आपके जीवन के ८४ ऋतु चक्रों में ज्ञान एवं अध्ययन ने प्रारम्भ से ही आधार भूत भूमिका निभाई है । आपने विभिन्न शास्त्रों का मनन-चिंतन एवं अध्ययन कर तत्त्वबोध के नवनीत से जीवन को स्निग्ध बनाया है ।
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