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अभिनन्दन-पुष्प ७१ जैन संस्कृति के महान् सन्त मालवरत्न उपाध्याय पदालंकृत पूज्य गुरुदेव श्री कस्तूरचन्द जी महाराज के कर-कमलों में
समर्पित अभिनन्दन-उद्गार
। मदन लाल जैन (रावल पिंडी वाला) हे महामुने !
तुम्हारे जैसे महान् साधक, महान् योगी, महान् तपस्वी को पाकर आज शस्य श्यामला मालव धरा धन्य-धन्य हो गई एवं अपने आप में गौरवान्वित होकर फूली नहीं समा रही है। कारण यह है कि इस विलासी युग में आपके मुखारविन्द से निःसृत अमृतोपम उपदेश आज जन-जीवन के कर्ण-कुहरों तक परिव्याप्त है। जिनके सहारेसहारे आज का बुद्धिजीवी समाज जीवन-हित की दिशा में अग्रसर हो रहा है । हे शुभचिन्तक महामनस्वी !
तुम्हारे अन्तर्मानस में सदा सर्वदा शुभ संकल्प अंगड़ाइयां लेता रहा है। विश्व के सूक्ष्म स्थूल समस्त जीवात्मा सुखानुभूतिपूर्वक जीवन-यापन करें। पारस्परिक वैरविरोध की भावना को तिलांजलि देकर सभी जीवात्माएँ मैत्री भावना के भावार्थ को समझें एवं जीवन में आचरित करें। इसलिए तुम्हारी वाणी से आठों पहर शुभ संकल्पों की अमृत बरसात हुआ करती है। फलस्वरूप संसारी जन शुभाध्यवसायों से ओत-प्रोत होते हैं। हे आश्रयदाता महामुने!
आधि, व्याधि और उपाधि आदि त्रय तापों से अखिल विश्व दुःखित-पीड़ित एवं व्यथित परिलक्षित हो रहा है। मानो निर्भयता सर्वत्र विलुप्त हो गई हो, ऐसा प्रतीत होता है। इसीलिए महामुने ! पामर प्राणी आपके कमनीय चरण-कमलों के आश्रय की अपेक्षा करते हैं। चूंकि आपके कल्याणकामी आश्रय में पहुँच कर भव्यात्माएँ अपने आप में निर्भय बनकर सर्व भयों से मुक्त बनती हैं।
ऐसी तप:पूत आत्मा का अभिनन्दन करता हुआ मैं अपने आपको भाग्यवान समझता हूँ। ऐसे अभिनन्दन क्षण मेरे जीवन में सदैव आया करें। ताकि मेरा जीवन भी मंगलमुखी-सदा सुखी बने ।
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