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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
मुनि पीयूष (अमृत)
विश्व पर सदियों से महामनस्वी मुनियों का अमिट उपकार रहा है । सामाजिक क्षेत्र हो चाहे धार्मिक ; जब-जब मानव समाज अपना मार्ग भूलकर अज्ञानान्धकार में भटका है तब-तब महोपकारी मुनिजनों ने ही पुनः दिशादर्शन के बहाने विवेक का अरुणोदय किया है ।
अभिनन्दन की पंखुड़ियाँ
महामुनि वही कहलाता है जो आने वाले आँधी-तूफान व परीषहों से न घबराता हुआ अपनी साधना-आराधना में मदमस्त हस्ति की तरह गतिशील रहता है । कराहते हृदयों की व्यथा को दूर करने में तत्पर है । जो मैत्री और करुणा के स्रोत सदा प्रवाहित करते हुए त्याग और विराग में गतिशील है जिसके हृदय में क्या शत्रु क्या मित्र ? क्या अपना, क्या पराया ? क्या धनी और निर्धन ? सभी समान रूप से स्थान पाते हैं । वही साधक गुरु पद के योग्य उच्च आसन पर विराजित होता है । कहा है
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निर्भय कर दे मृत्यु से, कहीं न भय पहुँचाय । शान्त, दान्त, विक्रान्त ही, शुद्ध सन्त कहलाय ॥ शुद्ध सन्त कहलाय नाथ विश्वास दें । अपने सच्चे घर का नित्य विश्वास दें || सूर्य - चन्द्र उनको सर्वदा प्रणाम 1 संयम सद्धर्म
सत्य
प्रेम
लाम है |
( पं० सूरजचन्द डांगी) श्रद्धेय उपाध्याय मालवरत्न श्री कस्तूरचन्द जी महाराज भी एक महान् वयोवृद्ध विभूति हैं, जिनके पावन दर्शन कुछ वर्षों पहले मैंने रतलाम में किये थे । वास्तव में जिनका भव्य चेहरा और पीयूषवर्षिणी मधुर गिरा प्रत्येक मानव को आकर्षित किये बिना नहीं रहती है । मेरे वैराग्यमय विचारों की परिपुष्टि में मुझे आप से काफी प्रेरणा मिली है ।
प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज भी एक जाने-माने महान् संत साधक हैं । मैं मुनिद्वय के पावन चरणों में शत-शत अभिनन्दन की पंखुड़ियाँ समर्पित करता हूँ ।
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