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६२ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
मालवरत्न श्री कस्तूरचंदजी महाराज :
मधुबाला बाफना, एम. ए.
ॐ नमः
भारतभूमि देदीप्यमान रत्नों की खानि है । उसके अतीत से कई महापुरुषों ने जन्म लिया एवं देश के नागरिकों की आत्म जागृति, आत्म-उत्थान एवं पर-कल्याण में अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया। उन्हीं महान् आत्माओं में से मालवरत्न, प्रातः स्मरणीय, ज्योतिष विशारद, शान्ति के सम्राट्, महान् पुण्यशाली आत्मा, परम मनस्वी, अखण्ड यशधारी, पूज्यप्रवर श्रद्धेय गुरुवर श्री कस्तूरचन्दजी महाराज का अपना अनुपम एवं अद्वितीय स्थान है ।
एक शब्द चित्र
इस धर्म महारथी एवं महामनीषी के द्विव्य पुंज का उदय मालव प्रान्त में स्थित जावरा नगर में वि० स० १६४६ जेठ वदी १३ रविवार के पुण्य प्रभात को चपलोत परिवार में श्रेष्ठिवर्य श्री रतिचन्द्रजी चपलोत के यहाँ श्रीमती फूलबाई की कूंख से अवतरण हुआ था । सेठ श्री रतिचन्द्रजी नवाब के यहाँ मोदी का काम करते थे । इनका भरा-पूरा परिवार था । इस दम्पत्ति को सात पुत्र एवं तीन पुत्रियों की प्राप्ति हुई थी । आप बहुत ही दयालु स्वभाव के व्यक्ति थे, उनकी दयालुता का परिचय इस प्रकार है । वि० सं० १९५६ में जब जावरा में भयंकर दुष्काल ने भयानक रूप धारण कर मानवों को अस्त-व्यस्त कर दिया था, प्रकृति के प्रकोप के कारण अन्न के अभाव में सर्वत्र त्राहि-त्राहि मची हुई थी, ऐसे संकट के समय में श्रेष्ठिवर्य श्री रतिचन्द्रजी ने जनता को सस्ते भाव में अनाज बेचा एवं दयालुता का परिचय दिया । आपने दुष्काल के समय अपने स्वार्थ को त्यागकर जनता के दुःख-दर्द को दूर कर जो आदर्श व्यवहार किया वह अत्यन्त प्रशंसनीय है ।
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पूज्य गुरुवर पर उनके पिताश्री के चरित्र की अमिट छाप उभर आई और १४ वर्ष की यौवन अवस्था में ही सन्तों के समागम के द्वारा आपके हृदय में मायावी संसार की निस्सारता से अरुचि उत्पन्न हो गई एवं समस्त प्रकार के सुखों के साधनों एवं भोग विलास के जीवन को त्याग कर वैराग्य भावना से परिपूर्ण होकर वि० सं० १९६२ कार्तिक शुक्ला १३ गुरुवार को रामपुरा के लाल बाग में श्रद्धेय श्री खूबचन्दजी महाराज के चरण कमलों में गुरु श्री जवाहरलाल जी महाराज के उपदेश से किशोर अवस्था के आंगन में अति अल्प आयु में ही कंटकाकीर्ण मार्ग को अपना कर अष्टादश पापों को त्याग कर भागवती दीक्षा अंगीकार की एवं संयम मार्ग की निर्मल आराधना से मुक्ति मार्ग को अपनाकर अपने आप को कृत-कृत्य किया ।
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